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बुधवार, 30 सितंबर 2009

ठंडे पड़े कांग्रेस के बागियों के जोश:



नामांकन वापसी के आखिरी दिन कांग्रेस के तीन बागियों ने कदम वापस खींच लिए हैं, लेकिन अभी भी सभी दलों को बागियों की बगावत झेलनी पड़ रही है। ऐलनाबाद से अनिल खोड़, सिरसा से डेरा प्रेमी-कांग्रेसी बचनलाल बजाज व कालांवाली से ओमप्रकाश केहरवाला के नाम शामिल हैं। जबकि एक अन्य बागी नवीन केडि़या का नामांकन किसी कमी के चलते रद्द कर दिया गया। कांग्रेस सहित अन्य दलों के शेष बागी अभी भी मैदान में डटे हैं। डबवाली व सिरसा जैसी हॉट सीट से पार्टी के सिपहसलारों की बगावत जारी है। डबवाली में हेवीवेट रवि चौटाला चुनावी मैदान में बतौर निर्दलीय डटे हुए हैं। कुछ दिन पहले तक रवि चौटाला पार्टी की नीतियों का महिमा मंडन किया करते थे लेकिन अब वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरकर कांग्रेस को खरी खोटी सुनाने से बाज नहीं आ रहे। साथ ही यह भी जोड़ते हैं कि कांग्रेस ने टिकट बेची है और उन लोगों को टिकट दी है लोकदल की पृष्ठभूमि से थे। बहुजन समाज पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर राजेश वैद्य ने भी बगावती झंडा उठा लिया और उन्होंने हरियाणा जनहित कांग्रेस से कालांवाली विधानसभा क्षेत्र से बतौर पार्टी प्रत्याशी अपना नामांकन दाखिल कर दिया।

बागी बेलगाम



: प्रदेश में बागी उम्मीदवारों के तौर पर चुनाव लड़ रहे नेताओं पर नकेल नहीं डाली जा सकी है। नाम वापसी के अंतिम दिन कांग्रेस के सिर्फ छह बागी उम्मीदवारों ने अपने पर्चे वापस लिए। चुनाव में बागियों के ताल ठोंकने से जहां पार्टी के घोषित उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ गई हैं, वहीं मुकाबला भी रोचक हो गया है। प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर बागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। ज्यादातर बागी कांग्रेस में हैं। दो दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने इन बागियों को मना लिए जाने का भरोसा जताया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं पर्यवेक्षक विपल्व ठाकुर को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई, मगर नाम वापसी के अंतिम दिन तक कांग्रेस नेताओं के बागियों को मनाने के तमाम प्रयास विफल हो गए हैं। कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा बगावत हजकां में हैं। बाकी दल भी बागियों से परेशान नहीं हैं। गन्नौर में कांग्रेस के प्रांतीय कार्यकारी प्रधान कुलदीप शर्मा के मुकाबले वेद मलिक ने नाम वापस ले लिया है। वेद मलिक के चुनाव लड़ने से कुलदीप शर्मा की दिक्कतें बढ़ गई थी। हांसी में प्रो. छतरपाल के मुकाबले चुनाव लड़ने वाले अमीर चंद मक्कड़ को भी मना लिया गया है। सत्यबाला मलिक ने भी यहां से पर्चा वापस लेने की घोषणा कर दी है। पंचकूला में कांग्रेस प्रत्याशी डीके बंसल के खिलाफ हजकां उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के बागी शशि शर्मा मैदान में हैं। कालका में कांग्रेस के सतविंद्र राणा के खिलाफ पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह के पुत्र भगत सिंह ने अपना नाम वापस नहीं लिया है। वह आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के कालका दौरे के बावजूद भगत सिंह ने कांग्रेसियों की नहीं मानी। महम में पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस प्रत्याशी आनंद सिंह डांगी के खिलाफ शमशेर सिंह चुनाव मैदान से हटने को तैयार नहीं हुए हैं। शमशेर सिंह पंचायती उम्मीदवार बताए जाते हैं। साढ़े चार साल पहले तक उन्हें कांग्रेसी माना जाता था, लेकिन टिकट बंटवारे के समय कांग्रेस के प्रति उनकी निष्ठाओं पर सवाल खड़े हो गए हैं। लोहारू में कांग्रेस उम्मीदवार सोमवीर सिंह के खिलाफ जेपी दलाल चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। दलाल किरण चौधरी के करीबी माने जाते हैं। बेरी में विधानसभा अध्यक्ष रघुबीर कादियान के खिलाफ चतर सिंह बागी प्रत्याशी के रूप में डटे हुए हैं। बादली में पूर्व विधायक एवं कांग्रेस उम्मीदवार नरेश शर्मा के विरुद्ध पूर्व डिप्टी स्पीकर मनफूल सिंह के पुत्र बिजेंद्र चाहर ने मोर्चा खोल दिया है। लाडवा में पूर्व सांसद एवं कांग्रेस प्रत्याशी प्रो. कैलाशो सैनी के खिलाफ पवन गर्ग नाम वापस लेने को राजी नहीं हुए। थानेसर में पूर्व विधायक रमेश गुप्ता के खिलाफ सुभाष सुधा ने मोर्चा खोला हुआ है। उन्हें मनाने की अंतिम समय तक कोशिशें की गई, मगर सुधा ने नाम वापस लेने से इनकार कर दिया है। फिरोजपुर झिरका में डिप्टी स्पीकर आजाद मोहम्मद की धर्मपत्नी फरीदा बेगम ने ऐन वक्त पर अपना नाम वापस ले लिया। फरीदा कांग्रेस प्रत्याशी इंजीनियर मामन खान के खिलाफ फरीदा चुनाव लड़ रही थी। थानेसर में हजकां उम्मीदवार बलकार सिंह के खिलाफ बागी नेता पूर्व मंत्री देवेंद्र शर्मा बसपा प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंके हुए हैं। असंध हलके में हजकां के पंडित जिले राम शर्मा के खिलाफ बागी नेता यशपाल राणा एडवोकेट ने पंचायती उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। करनाल में कांग्रेस के बागी पूर्व मंत्री जयप्रकाश गुप्ता को जब हजकां का टिकट मिला तो हजकां के बागी स. बलविंद्र कालड़ा ने बसपा उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक दी। लाडवा में इनेलो उम्मीदवार शेर सिंह बड़शामी को टिकट देने के खिलाफ पार्टी नेता मेवा सिंह भाजपा टिकट पर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। डबवाली में कांग्रेस उम्मीदवार डा. केवी सिंह के खिलाफ बागी उम्मीदवार रवि चौटाला अभी भी मैदान में डटे हुए हैं। सिरसा में कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मण दास अरोड़ा के खिलाफ नवीन केडि़या चुनाव मैदान से हट गए हैं। घरौंडा में कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र राठौर के विरुद्ध कृष्ण शर्मा बसताड़ा ने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव की ताल ठोंकी हैं। गोहाना हलके में कांग्रेस उम्मीदवार जगबीर मलिक के खिलाफ पूर्व विधायक किताब सिंह मलिक ने चुनाव लड़ने का एलान किया है। बेहद कोशिशों के बाद भी किताब सिंह का नाम वापस नहीं कराया जा सका। फतेहाबाद में कांग्रेस के दूड़ा राम के खिलाफ प्रहलाद सिंह गिलाखेड़ा नाम वापस लेने को राजी नहीं हो पाए हैं। रतिया में कांग्रेस के जरनैल सिंह के खिलाफ पूर्व सांसद आत्मा सिंह गिल के पुत्र गुरदीप सिंह गिल चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। गुड़गांव में इनेलो प्रत्याशी एमआर शर्मा के खिलाफ आजाद प्रत्याशी के रूप में सुखबीर कटारिया नाम वापस लेने को तैयार नहीं हुए। असंध में कांग्रेस के रमेश चौधरी के खिलाफ बागी रघुबीर सिंह विर्क ने ताल ठोंकी हैं। सिरसा में कांग्रेस उम्मीदवार लक्ष्मण अरोड़ा के खिलाफ चुनाव मैदान में डटे बचन सिंह बजाज ने अपना नाम वापस ले लिया है। उनके भाई सुभाष चंद भी चुनाव मैदान से पीछे हट गए हैं। बरवाला में हजकां उम्मीदवार सुभाष टांक के खिलाफ अनंत सिंह बरवाला और भाजपा उम्मीदवार जितेंद्र जोग के खिलाफ जोगी राम सिहाग पूरी तरह से चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। तोशाम में कांग्रेस प्रत्याशी किरण चौधरी के खिलाफ पूर्व मुख्य संसदीय सचिव धर्मबीर के भाई राजबीर लाला ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। भिवानी में पूर्व विधायक कांग्रेस के डा. शिवशंकर के खिलाफ जिला महासचिव परमजीत मड्डू मैदान में बरकरार हैं।

जजर्र हुआ शहीदे आजम का पैतृक घर


( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- शहीद भगत सिंह नगर (नवांशहर) भले ही खटकड़कलां में स्थित शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पैतृक घर को सरकार की ओर से सुरक्षित स्मारक घोषित किया गया है लेकिन घर के आगे की दीवारों की जर्जर हालत व अंदर पड़े लकड़ी के सामान को लगी दीमक घर को सुरक्षित नहीं बता रही। यदि समय रहते इस ऐतिहासिक विरासत को संभाला नहीं गया तो इसकी हालत और भी जर्जर हो सकती है। करीब 100 साल पहले नानकशाही ईटों से बने शहीद के घर को शीघ्र रिपेयर व ट्रीटमेंट की जरूरत है। घर की दयनीय हालत को देखकर स्तब्ध हुए शहीद भगत सिंह के भतीजे अभय सिंह संधू ने बताया कि प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर घर की सफाई व सफेदी करवाई जाती है। परन्तु इस साल 23 मार्च को सफेदी नहीं करवाई गई। जिस कारण बरसात के सीजन में घर की दीवारों की हालत ज्यादा खराब हो गई। उन्होंने कहा कि जब पिछले वर्ष 23 मार्च को उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार से सफेदी न करवाने संबंधी बात की तो उन्हें जवाब मिला कि देश में लोक सभा चुनाव होने के कारण कोड-आफ-कंडक्ट लगा हुआ है। जिस कारण इस बार सफेदी नहीं हो सकती। अभय सिंह संधू ने सवाल करते हुए कहा कि क्या शहीदों के स्मारकों पर भी कोड-आफ-कंडक्ट लगता है? अभय सिंह संधू ने बताया कि शहीद के पैतृक घर के अंदर लकड़ी की अलमारियों को दीमक लग चुका है तथा अंदर की दीवारें भी सफेदी न होने के कारण खराब हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि नानकशाही ईटों की दीवारें अपना मूल स्वरूप खो रहीं हैं। अभय सिंह संधू ने कहा कि सरकारों की ओर से फंड तो जारी किए जाते हैं परन्तु उनका सही उपयोग नहीं होता। उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार से मांग की कि गांव खटकड़कलां में 17 करोड़ रुपए की लागत से जो म्यूजियम व भगत सिंह की यादगार बनाई जा रही है उसे किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा बनाया जाए। उन्होंने कहा कि शहीद भगत सिंह की याद को ताजा रखने के लिए पिछले वर्ष उनकी जन्मशताब्दी समारोह में सरकार द्वारा पांच व सौ रुपये के जो सिक्के

पंजाब के मुख्यमंत्री बादल एक अक्टूबर को रोड़ी में



कालावाली( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
कालावाली सुरक्षित से अकालीदल व इनेलो के साझा प्रत्याशी चरणजीत सिंह के पक्ष में खेल रत्न अभय सिंह चौटाला ने चुनाव प्रचार किया। अभय सिंह चौटाला ने कहा कि प्रदेश में इनेलो की ही सरकार बनेगी, जबकि कांग्रेस सहित अन्य सभी राजनीतिक दलों का सूपड़ा साफ हो जाएगा। चौटाला मंगलवार को रोड़ी में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। चौटाला ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी एक अक्टूबर को चरणजीत के समर्थन में रोड़ी में जनसभा को संबोधित करेगे। उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी के लिए कार्यकर्ता रीढ़ की हड्डी होते है इसलिए सभी कार्यकर्ता ईमानदारी से अपनी पार्टी के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि चौ. ओमप्रकाश चौटाला की जनकल्याणकारी नीतियों की बदौलत हर वर्ग उत्साहित रहा है। उन्होंने कहा कि चौटाला ने ही जननायक चौ. देवीलाल की नीतियों पर चलते हुए रोजगारपरक शिक्षा नीति लागू कर न केवल शिक्षा का विस्तार किया था बल्कि युवाओं को रोजगार के भी विभिन्न अवसर प्रदान करवाएं गये थे। उन्होंने कहा कि विकास कार्यो की बदौलत हरियाणा का नाम विश्व के विकसित प्रदेशों में गिना जाने लगा था। आज आप प्रदेश का हाल देख रहे हो, उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में इनेलो सरकार कार्यकाल में करवाएं गए विकास कार्यो की जानकारी देते हुए बताया कि सरकार ने नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई पानी की व्यवस्था की थी, इसके साथ ही बिजली की व्यवस्था पर करोड़ों रुपये की राशी खर्च की गई थी। चौटाला ने केंद्र की कांग्रेस सरकार पर प्रहार करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण ही प्रदेश में महगाई चरम सीमा पर है, गरीब आदमी के मुंह का निवाला मौजूदा सरकार ने छीना है। तथा प्रदेश के नरमा उत्पादकों को उनकी फसल के समुचित भाव नहीं मिल पा रहे है। उन्होंने अपनी सरकार के विकास कार्य जनता को याद करवाएं व अधूरे विकास कार्य पूरे करवाने के लिए इनेलो व अकाली दल के साझा प्रत्याशी को वोट देने की अपील की इस समय उनके साथ हल्का सरदूलगढ़ के विधायक बलविन्द्र सिंह भूंदड, बुढ़लाडा के विधायक हरबंत सिंह हरता, महन्त बलदेव दास रोड़ी, सरपंच बलवीर सिंह नागाकी, प्रगट सिंह भीमा, गुरजंट सिंह थिराज सहित पंजाब प्रदेश के अन्य नेता गण मौजूद थे।

विजेंद्र नंबर वन


( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
: आईसीसी वनडे रैंकिंग में विश्व के नंबर वन बल्लेबाज महेंद्र सिंह धौनी के बाद अब एक अन्य भारतीय विश्व रैंकिंग में नंबर वन बना है। ओलंपिक व विश्व चैंपियनशिप में कांस्य जीतने वाले विजेंद्र सिंह ने मिडिलवेट (75 किग्रा) वर्ग में विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। भारतीय खिलाडि़यों की विश्व क्रिकेट में तूती बोलने के बाद अब मुक्केबाजी में भी भारत का वर्चस्व शुरू हो गया है। विजेंद्र ने विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त कर भारतीय मुक्केबाजी के लिए एक और उपलब्धि हासिल की। वे मुक्केबाजी में शीर्ष स्थान बनाने वाले पहले भारतीय हैं। विजेंद्र ने इस माह के शुरू में मिलान में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य जीतकर भारत को इस टूर्नामेंट का पहला पदक दिलाया था। उनके कुल 2700 अंक हैं और वह उजबेकिस्तान के मौजूदा चैंपियन एब्बोस अतोव को पीछे छोड़कर शीर्ष पर पहुंच गए हैं। विश्व चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में भिवानी का यह मुक्केबाज अतोव से हार गया था। अतोव रैंकिंग में 2100 अंक से तीसरे और ओलंपिक रजतधारी क्यूबा के एमिलियो कोरिया बाएक्स (2500) मिलान चैंपियनशिप के बाद अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) की सूची में दूसरे स्थान पर हैं। अन्य भारतीयों में पूर्व विश्व युवा चैंपियन थाकचोम ननाओ सिंह लाइट फ्लाईवेट (48 किग्रा) वर्ग में तीन पायदान खिसककर 1400 अंक से आठवें स्थान पर पहुंच गए। चीन में इस वर्ष हुई एशियाई चैंपियनशिप में रजत जीतने वाले ननाओ विश्व चैंपियनशिप के दूसरे राउंड में हार गए थे। ओलंपियन अखिल कुमार फेदरवेट (57 किग्रा) वर्ग में एक पायदान खिसकर 1050 अंक से 10वें स्थान पर हैं। कलाई की चोट के कारण वह विश्व चैंपियनशिप के पहले दौर में बाहर हो गए थे। वहीं साथी ओलंपियन जितेंद्र कुमार (54 किग्रा) भी मिलान में पहले राउंड में हार गए थे, जिससे वह खिसक कर 838 अंक से 14वें नंबर पर आ गए हैं। सुरंजय सिंह फ्लाई वेट (51 किग्रा) वर्ग में 17वें और विश्व चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाले दिनेश कुमार लाइटवेट (81 किग्रा) वर्ग में 1550 अंकों के साथ छठे स्थान पर हैं।

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

धुरंधरों की लंबी फौज मैदान में



,( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- : हरियाणा के चुनावी समर में राजनीति के धुरंधरों की लंबी-चौड़ी फौज मोर्चे पर डटी हुई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा अपनी पूरी कैबिनेट के साथ चुनाव मैदान में हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला समेत 113 दिग्गज वोट के लिए लोगों के बीच पहुंचे हुए हैं। प्रदेश की राजनीति के इतिहास में यह पहला मौका है, जब एक साथ इतने मंत्री, पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद विधानसभा में पहुंचने के लिए बेताब दिखाई पड़ रहे हैं। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा समेत सभी 11 मंत्रियों को टिकट दिए हैं। विधानसभा अध्यक्ष रघुबीर कादियान, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना, महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सुमिता सिंह, कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप शर्मा और युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष संजय छोक्कर भी टिकट के साथ जनता के दरबार में पहुंच चुके हैं। वित्त मंत्री बीरेंद्र सिंह, पर्यटन मंत्री किरण चौधरी, उद्योग मंत्री लक्ष्मण दास अरोड़ा, सहकारिता मंत्री मीना मंडल, कृषि मंत्री हरमोहिंद्र सिंह चट्ठा, सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय यादव, शिक्षा मंत्री मांगे राम गुप्ता, बिजली मंत्री रणदीप सुरजेवाला और राजस्व मंत्री सावित्री जिंदल पर कांग्रेस ने पूरा भरोसा जताया है। यह सभी नेता मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल के सदस्य हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि पूरा मंत्रिमंडल विधानसभा चुनाव लड़ रहा है। हरियाणा के चुनावी समर में एक मुख्यमंत्री, एक पूर्व मुख्यमंत्री, 10 राज्य मंत्री, 41 पूर्व मंत्री, 57 पूर्व विधायक, एक राज्यसभा सदस्य और तीन पूर्व सांसद ताल ठोंक रहे हैं। कांग्रेस ने राजनीति के अनुभवी पंडितों पर सबसे अधिक भरोसा जताया है। राज्य विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस द्वारा 31 निवर्तमान एवं पूर्व विधायकों तथा 17 निवर्तमान संसदीय सचिवों व पूर्व मंत्रियों पर भरोसा जताया गया है। इनेलो ने नौ पूर्व विधायकों और इतने ही पूर्व मंत्रियों पर भरोसा जताया है। हजकां ने आठ पूर्व विधायकों और पांच पूर्व मंत्रियों को टिकट दिए जबकि भाजपा ने चार पूर्व विधायकों और चार पूर्व मंत्रियों पर जीत के लिए दांव खेला है। बसपा के दो पूर्व विधायक और चार पूर्व मंत्री चुनावी समर में ताल ठोंक रहे हैं तो तीन आजाद पूर्व विधायक और दो आजाद पूर्व मंत्री भी 2009 में बनने वाली नई विधानसभा में प्रवेश को उत्सुक बैठे हैं। पूर्व सांसदों में जय प्रकाश जेपी, प्रो. कैलाशो सैनी और कुलदीप बिश्नोई विधायक बनने के लिए लोगों के बीच हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा किलोई से चुनाव लड़ रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने उचानाकलां और ऐलनाबाद से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। राज्यसभा सांसद अजय चौटाला एमएलए बनने के लिए चुनावी समर में जमकर प्रचार कर रहे हैं।

9 अक्टूबर से फिर दिया जाएगा ईवीएम प्रशिक्षण



सिरसा,( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नियुक्त किए गए नोडल व मतदान अधिकारियों को ईवीएम का प्रशिक्षण दिया जाएगा। जिले के अंतर्गत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव संबंधित अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए विभिन्न स्थानों पर रिहर्सल कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जिला निर्वाचन अधिकारी युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने बताया कि सभी अधिकारियों को पांच अक्टूबर को चौ. दलबीर सिंह इंडोर स्टेडियम में पायलट रिहर्सल करवाई जाएगी।

उन्होंने बताया कि द्वितीय रिहर्सल 9 अक्टूबर को अलग-अलग स्थानों पर करवाई जाएगी। उन्होंने बताया कि रानियां विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल सुबह 10 बजे और ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल दोपहर 2 बजे चौ. दलबीर सिंह इंडोर स्टेडियम में करवाई जाएगी। 9 अक्टूबर को सिरसा व कालांवाली विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल सीमके कालेज के सभागार में सुबह 10 व दोपहर 2 बजे करवाई जाएगी जबकि डबवाली विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल महाराणा प्रताप महिला कालेज डबवाली में सुबह 10 बजे करवाई जाएगी।

उन्होंने बताया कि ईवीएम से संबंधित अंतिम रिहर्सल 12 अक्टूबर को प्रात: 9 बजे अलग-अलग स्थानों पर करवाई जाएगी। कालांवाली विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल पंचायत भवन सिरसा, डबवाली विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल महाराणा प्रताप महिला कालेज में, रानियां विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की अंतिम रिहर्सल राजकीय बहुतकनीकी कालेज सिरसा, सिरसा विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल सीएमके कालेज के सभागार में और ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र के अधिकारियों की रिहर्सल उपमंडल अधिकारी ऐलनाबाद के कार्यालय में करवाई जाएगी। उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को समय पर पहुंचने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में ईवीएम मशीनों की उचित व्यवस्था की जाएगी। सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को बारीकी ईवीएम संबंधी जानकारी होनी आवश्यक है।

इनेलो की सरकार बना लो, बाकी काम मेरे जिम्मे छोड़ दो,--अजय सिंह चौटाला


डबवाली( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
एक बार आप राजनैतिक ताकत देकर अपनी सरकार बना लो, बाकी काम मेरे जिम्मे छोड़ दो, कोई कोर कसर नहीं रहने दूंगा। आपके हक में जो भी होगा, वही कानून बना कर नीचे लिख दिया जाएगा....ओमप्रकाश चौटाला। उक्त शब्द डबवाली से इनेलो प्रत्याशी अजय सिंह चौटाला ने कहे। वे आज डबवाली हलके के गांवों में जनसभाओं को संबोधित कर रहे थे। गांवों में पंहुचने पर अजय सिंह चौटाला का जोरदार स्वागत किया और अपना समर्थन व्यक्त किया। पार्टी महासचिव ने आज मु़ख्यमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इनेलो कहने में नहीं काम करने में विश्वास करती है। प्रदेश का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि इनेलो ने जो बात कही है, उसे पूरा करके दिखया है। उन्होंने कहा कि चौधरी देवीलाल ने 1987 में कर्ज माफ करने व वृद्धों को पेंशन देने का वायदा किया था तो कांग्रेसी नेताओं ने इसे वोट लेने का स्टंट बताते हुए कहा था ऐसे कानून तो बन ही सकता पर चौधरी देवीलाल ने सत्ता संभालते ही कर्ज माफी व वृद्धावस्था पेंशन योजना लागू कर कांग्रेसियों की बोलती बंद कर दी थी। आज ऐसी योजनाओं का अनुसरण पूरे देश में किया जा रहा है। अब भी हम वायदा करते हैं जो कहा है सरकार आने पर उसे पहली कलम से पूरा करके दिखाएंगे। उन्होंने कहा कि इस बार भी पार्टी को बहुमत मिलने के बाद हम विधानसभा में कानून बनाने के लिए जाएंगे न कि भेड़ चराने। जो कहा है उसे करके दिखाएंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर पलटवार करते हुए कहा कि घोषणाएं करने में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का विश्वास है, इनेलो का नहीं। इनेलो को जनहित योजनाएं लागू करने में विश्वास रखती है। इनेलो प्रत्याशी अजय चौटाला ने कहा कि यदि आप चाहते हैं कि हर वर्ग का एक लाख रूपये तक का कर्ज माफ हो,सभी वृद्धों को समान रूप से 1200 रूपये पेंशन व तीन हजार रूपये बेरोजगारी भत्ता मिले। हर घर में निशुल्क गैस कनेक् शन चूल्हे समेत व हर घर में स्वच्छ पेयजल हर घर में पहुंचे और हर गरीब व पिछड़े वर्ग के बीपीएल कार्ड बनें और स्कूल के बाद उनकी बेटियां स्कूटी पर मोपेड जाएं तो, 13 अक्टूबर को सभी एक झंडे के नीचे आज कर चश्मे का बटन दबा देना। सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। आज अजय सिंह चौटाला ने गांव किंगरे, मिलकपुरा, ओंढो, चोरमार, सालमखेड़ा, नूईयांवाली, घूंघावाली आदि गांवों का दौरा किया। दौरे में उनके साथ निवर्तमान विधायक डा. सीताराम, राधेराम गोदारा, सरदार जगरूप सिंह, बलराम जाखड़, महेंद्र डूडी, भरत सिंह ओंढा, सुखमिंदर सिंह, सीतादेवी सहित अन्य इनेलो नेता उपस्थित थे।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

IN DEPTH STORY ABOUT THE FUTURE KASHMIR









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Religious groups: Indian-administered Kashmir

REGION Buddhist Hindu Muslim Other
Kashmir Valley - 4% 95% -
Jammu - 66% 30% 4%
Ladakh 50% - 46% 3%
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Religious groups: Pakistani-administered Kashmir

REGION Buddhist Hindu Muslim Other
Northern Areas - - 99% -
Azad Jammu and Kashmir - - 99% -

Source: Indian/Pakistani Government Censuses
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Scenario one: The status quo
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Kashmir has been a flashpoint between India and Pakistan for more than 50 years. Currently a boundary - the Line of Control - divides the region in two, with one part administered by India and one by Pakistan. India would like to formalise this status quo and make it the accepted international boundary. But Pakistan and Kashmiri activists reject this plan because they both want greater control over the region.

In 1947-8 India and Pakistan fought their first war over Jammu and Kashmir. Under United Nations' supervision, they agreed to a ceasefire along a line which left one-third of the state - comprising what Pakistan calls Azad Jammu and Kashmir, and the Northern Areas administered by Pakistan and two-thirds, Jammu, Ladakh and the Kashmir Valley, administered by India.

In 1972, under the terms of the Simla agreement, the ceasefire line was renamed the Line of Control.

Although India claims that the entire state is part of India, it has been prepared to accept the Line of Control as the international border, with some possible modifications. Both the US and the UK have also favoured turning the Line of Control into an internationally-recognised frontier.

But Pakistan has consistently refused to accept the Line of Control as the border since the predominantly Muslim Kashmir Valley would remain as part of India. Formalising the status quo also does not take account of the aspirations of those Kashmiris who have been fighting since 1989 for independence for the whole or part of the state.

Scenario two: Kashmir joins Pakistan
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Pakistan has consistently favoured this as the best solution to the dispute. In view of the state's majority Muslim population, it believes that it would vote to become part of Pakistan. However a single plebiscite held in a region which comprises peoples that are culturally, religiously and ethnically diverse, would create disaffected minorities. The Hindus of Jammu, and the Buddhists of Ladakh have never shown any desire to join Pakistan and would protest at the outcome.

In 1947 India and Pakistan agreed that the allegiance of the state of Jammu and Kashmir would be decided by a plebiscite. Had the majority voted in favour of Pakistan, the whole state would have become part of Pakistan. This no longer seems to be an option.

A plebiscite offering the choice of union with Pakistan or India also does not take into account the movement for independence which has been supported by political and militant activists since 1989. India has long since rejected the idea of a plebiscite as a means of settling the Kashmir issue.

Instead the government argues that the people have exercised their right of self-determination by participating in elections within the state.

However the demand for a plebiscite to be held, as recommended by the Governor-General of India, Lord Mountbatten in 1947, and endorsed by the United Nations Security Council, is still considered by some as a way of letting Kashmiris exercise their right of self-determination.

Scenario three: Kashmir joins India
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Such a solution would be unlikely to bring stability to the region as the Muslim inhabitants of Pakistani-administered Jammu and Kashmir, including the Northern Areas, have never shown any desire to become part of India.

In 1947, the Maharajah of Jammu and Kashmir agreed to the state becoming part of India. India and Pakistan then agreed to hold a plebiscite to confirm which country Kashmir's citizens wanted to join. The Indian Government believed that the majority population, under the charismatic leadership of Sheikh Abdullah, would vote to join India, with its secular constitution, rather than Muslim Pakistan.

If the plebiscite had been held and the majority had voted in favour of India, Pakistan would have had to relinquish control of the Northern Areas and the narrow strip of Jammu and Kashmir which it occupied militarily in 1947-8.

India has long since rejected the idea of holding a single plebiscite as a means of determining the fate of the state of Jammu and Kashmir. It believes that the people made their choice by participating in elections within the state.

Without including a third option of independence from both India and Pakistan, the plebiscite also fails to satisfy the demands of those Kashmiris wanting full independence.


Scenario four: Independent Kashmir
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The difficulty of adopting this as a potential solution is that it requires India and Pakistan to give up territory, which they are not willing to do. Any plebiscite or referendum likely to result in a majority vote for independence would therefore probably be opposed by both India and Pakistan. It would also be rejected by the inhabitants of the state who are content with their status as part of the countries to which they already owe allegiance.

An independent Jammu and Kashmir might also set in motion the demand for independence by other states in both India and Pakistan and lead to a "Balkanisation" of the region.

In the 1960s, following discussions between India and Pakistan over Jammu and Kashmir, a group of Kashmiris demanded that the entire state should become independent as it was prior to the Maharajah's accession to India in 1947.

The movement for independence of the entire state is mainly supported by Kashmiris who inhabit the more populous Kashmir Valley and who would like both India and Pakistan to vacate the areas they are occupying. They base their claim on the fact that the state was formerly an independent princely state, is geographically larger than at least 68 countries of the United Nations, and more populous than 90.

This movement is not supported by India or Pakistan, both of which would lose territory. And in view of the likely regional instability, an independent Kashmir is not supported by the international community either.


Scenario five: A smaller independent Kashmir
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An independent Kashmir could be created from the Kashmir Valley - currently under Indian administration - and the narrow strip of land which Pakistan calls Azad Jammu and Kashmir. This would leave the strategically important regions of the Northern Areas and Ladakh, bordering China, under the control of Pakistan and India respectively. However both India and Pakistan would be unlikely to enter into discussions which would have this scenario as a possible outcome.

If, as the result of a regional plebiscite, which offered the option of independence, the majority of the inhabitants of the Kashmir Valley chose independence and the majority of the inhabitants of Pakistani-administered Jammu and Kashmir, (excluding the Northern Areas) also chose independence, a smaller, independent Kashmir could be created by administratively joining these two areas together.

This would leave the predominantly Muslim Northern Areas as part of Pakistan and Buddhist Ladakh and majority Hindu Jammu as part of India, with the possibility that some Muslim districts of Jammu might also opt to join the independent state.

Although Pakistan has demanded a change in the status of the Kashmir Valley, it depends on water from the Mangla Reservoir in Pakistani-administered Jammu and Kashmir and would be unlikely to permit loss of control of the region.

India is still committed to retaining the Kashmir Valley as part of the Indian Union and has refused to consider holding a plebiscite in any part of the state.

Regardless of the aspirations of the inhabitants, to date neither country has contemplated a situation where the end result would adversely affect their own interests.

Scenario six: Independent Kashmir Valley
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An independent Kashmir Valley has been considered by some as the best solution because it would address the grievances of those who have been fighting against the Indian Government since the insurgency began in 1989. But critics say that, without external assistance, the region would not be economically viable.

The movement for independence in the Kashmir Valley gained momentum in the late 1980s when Kashmiris protested against their continuing allegiance to the Indian Union. In the present day, if a regional plebiscite offered independence as an option, it is possible that the majority of Kashmiris would vote in favour of independence.

With an approximate land mass of 1,800 square miles (80 miles long, 20 to 25 miles wide) it is much larger than Monaco and Liechtenstein – but only one-tenth of the size of Bhutan. Whether or not the rest of the state retained its current political affiliations, many Kashmiris therefore believe that the valley could be viable in its own right.

In terms of livelihood, the valley could sustain itself through tourism, handicrafts and agriculture.

But an independent Kashmir Valley would also need to retain good relations with its neighbours in order to survive economically. Not only is the region landlocked, but it is snowbound during winter.

An independent Kashmir Valley would have the advantage of giving neither Pakistan nor India a victory out of their longstanding dispute. But although Pakistan might favour the creation of an independent Kashmir Valley, India would be unlikely to agree to the loss of territory involved.

Autonomy of the same region under the Indian Union is also an option; Pakistan is more likely to request a 'joint protectorate' in order to share in safeguarding the Kashmir valley's political integrity and economic development.


Scenario seven: The Chenab formula
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This plan, first suggested in the 1960s, would see Kashmir divided along the line of the River Chenab. This would give the vast majority of land to Pakistan and, as such, a clear victory in its longstanding dispute with India. The entire valley with its Muslim majority population would be brought within Pakistan's borders, as well as the majority Muslim areas of Jammu.

With the inclusion of Ladakh, which also lies north of the Chenab river, India would be left with approximately 3,000 square miles of territory out of 84,000 square miles.

This solution would require the voluntary agreement of India to give up territory which it wants to retain. It is impossible to see what benefit India could derive from the transfer of so much land, and why the government - or the inhabitants of the region who are not contesting their status - would ever agree to such a solution.

It also does not take into account the movement for independence which has been extremely vocal ever since the insurgency began in the 1980s, and whose supporters have been demanding independence of all or part of the state.

डबवाली मामले पर फैसला रिर्जव


पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने डबवाली अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन की याचिका पर अपना फैसला रिजर्व रख लिया है। ज्ञात रहे कि डबवाली अग्निकांड पीडि़त एसोसिएशन ने उचित मुआवजे के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एक सदस्य आयोग का गठन भी किया था। जिसने मुआवजे के बारे कोर्ट में अपनी रिपोर्ट भी दी थी, लेकिन मुआवजा राशि बारे डीएवी गु्रप, एसोसिएशन व सरकार में एक सहमति नहीं थी। जिस पर हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया था।

कहीं रावण का पुतला जले तो कहीं कारीगर का दिल



दशहरा पर्व पर जब रावण व मेघनाथ के पुतलों को आग लगाई जाती है तब एक तरफ सभी लोग खुशियां मनाते हैं वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने आंसुओं को रोक नहीं पाता। धू-धूकर जलने वाले रावण व मेघानाथ के पुतलों को देखकर रोने वाला यह व्यक्ति इन्हीं पुतलों का डेढ़ माह में निर्माण करने वाला है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी रमेश कुमार मेहरा से हुई विशेष बातचीत में बताया कि वह पिछले 25 वर्षो से दशहरा पर्व पर जलाए जाने वाले पुतलों को बनाने का काम कर रहा है। उसने बताया कि इन पुतलों को बनाने में उसे डेढ़ माह का समय लगता है और जब उसके द्वारा बनाई गई कला कुछ ही मिनटों में जलकर राख हो रही होती है तब उसे अपनी कला को जलते हुए देखकर दर्द होता है। उसने कहा कि इस बार वह सिरसा में आयोजित होने वाले दशहरा समारोह के लिए जो पुतले तैयार कर रहा है उसमें नया अंदाज दिया है। उसने बताया कि इस बार जहां मेघनाथ की गर्दन चारों और घूमेगी वहीं दो ढाले भी लगातार घूमती रहेंगी। इस बार रावण तथा मेघनाथ के पुतलों को आग लगाने के लिए हनुमान उड़कर आएगा। यह इस समारोह में देखने योग्य दृश्य होगा। श्री रामा क्लब चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा इस बार 60वां दशहरा पर्व मनाया जा रहा है। इसी क्लब के तत्वावधान में पुतलों का निर्माण करवाया जा रहा है जिनकी लागत लगभग एक लाख रुपये होगी। इस बार रावण का पुतला 65 फुट, मेघनाथ का 60 फुट व लंका 24 फुट ऊंची बनाई गई है। कारीगर रमेश मेहरा ने बताया कि पिछले डेढ़ माह से इस काम में जुटा हुआ है और अब इन पुतलों का निर्माण कार्य अंतिम कड़ी में चल रहा है। उसने बताया कि दशहरा पर्व से एक-दो दिन पूर्व ही वह अपने काम को मुकम्मल कर लेगा। इन पुतलों के बनाने में उसे 20 हजार रुपये मेहनताना मिलेगा। दशहरा पर्व के पश्चात रमेश मेहरा फिर से दिनचर्या के कार्य स्टोव, गैस की मरम्मत कार्य में जुट जाएगा। उसने बताया कि चार पीढि़यों से उनका परिवार दशहरा पर्व पर पुतले बनाने का कार्य कर रहा है। उसने बताया कि पुतलों के निर्माण में कागज, पुरानी साड़ियां, सूतली, सन, मैदा, नीला थोथा, फोम, रंगीन कागज, कांगड़ा, डंक पन्नी, बांस आदि सामान का प्रयोग किया जाता है।

सीआईडी से ज्यादा नंबरदारों पर भरोसा



मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को सीआईडी से कहीं ज्यादा नंबरदारों पर भरोसा है। नंबरदारों को वह अपनी फौज के जंगी सिपाही मानते हैं। मुख्यमंत्री की राय है कि नंबरदारों की सूचनाएं न केवल सटीक होती हैं बल्कि समय से मिलती हैं। नंबरदारों के बूते पर कांग्रेस विधानसभा चुनाव की वैतरणी आसानी से पार कर लेगी। मुख्यमंत्री ने कांग्रेस भवन में नंबरदार एसोसिएशन की प्रांतीय बैठक के दौरान नंबरदारों के प्रति अपनी आत्मीयता का खुलासा किया। नंबरदार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष हरि सिंह खोखर ने कांग्रेस को समर्थन का ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के मार्गदर्शन में काम करने की घोषणा की। बैठक में राज्य भर के नंबरदारों ने भागीदारी की। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उनके साथ सीधे संवाद स्थापित किया। मुख्यमंत्री बोले कि नंबरदारों की सूचनाओं के आधार पर न केवल राजनीतिक समस्याओं का समाधान संभव है बल्कि लोगों के बीच उनकी दिक्कतों की सही जानकारी भी मिलती है। उन्हें इस बात की खुशी है कि राज्य में कांग्रेस के प्रति माहौल बना हुआ है। लोग प्रत्येक हलके में भारी मतों से कांग्रेस को जिताने का मन बना चुके हैं। भूपेंद्र हुड्डा ने नंबरदारों को भरोसा दिलाया कि वह उनके शुभचिंतक हैं और उनके हितों की उन्हें फिक्र है। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद नंबरदारों की किसी भी समस्या को लंबित नहीं रहने दिया जाएगा। उन्होंने नंबरदारों से कांग्रेस के समर्थन में जी-जान से काम करने का आह्वान किया है। नंबरदार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष हरि सिंह खोखर ने कहा कि मुख्यमंत्री नेक दिल इनसान हैं। पार्टी के प्रति उनके समर्पण और लोगों के हितों की चिंता से हर कोई प्रभावित है। खोखर ने मुख्यमंत्री को भरोसा दिलाया कि राज्य भर में नंबरदार उनकी फौज के सैनिकों की तरह काम करेंगे। मुख्यमंत्री ने नंबरदारों की बैठक से पहले हजकां और भाजपा के कई नेताओं को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कराई। हजकां के प्रांतीय प्रवक्ता एवं तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे डा. सर्वदानंद आर्य, हजकां के प्रांतीय संगठन सचिव शिवनाथ कपूर, प्रदेश सचिव जयकुमार पुरी, स्वामी रूपकिशोर और भाजपा के प्रांतीय सदस्य प्रताप आट्टा ने अपनी पार्टियां छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। शिवनाथ कपूर को नगर सुधार मंडल करनाल के चेयरमैन ने कांग्रेस में शामिल कराया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना ने दूसरे दलों से आए नेताओं का स्वागत करते हुए उनके मान-सम्मान का भरोसा दिलाया। बैठक से पहले मुख्यमंत्री ने कांग्रेस भवन में अत्याधुनिक मीडिया सेंटर का उद्घाटन किया। इस मीडिया सेंटर में राज्य के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों के बारे में जानकारी उपलब्ध रहेगी तथा पत्रकारों को समाचार प्रेषण में कोई परेशानी नहीं आएगी। इन अवसरों पर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव विप्लव ठाकुर, सीएम के राजनीतिक सलाहकार प्रो. वीरेंद्र सिंह और मीडिया सलाहकार चौ. सुंदरपाल प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

चुनाव चिन्ह कल आवंटित होंगे


: असेंबली चुनाव दिन बीतने के साथ ही तेज होता जा रहा है। चुनाव आयोग ने नामांकन की स्क्रूटनिंग का काम निपटा लिया है। अब उन्हें इंतजार है 29 सितंबर को तीन बजने का। उसी दिन सारी लिस्ट फाइनल करके प्रत्याशियों को सिंबल अलाट किया जाएगा। जाहिर है कि चुनाव निशान मिलने के बाद ही प्रत्याशी सही तरीके से अपना चुनाव प्रचार शुरू करेंगे। सूत्रों का कहना है कि 432 नामांकन रद होने के बाद चुनाव मैदान में 1433 प्रत्याशी ही रह गए हैं। सहायक चुनाव अधिकारी हरि सिंह जग्गा का कहना है कि जांच-पड़ताल के दौरान वही नामांकन रद किए गए हैं जिन्होंने नियमों के तहत कोई जरूरी जानकारी नामांकन के समय छिपाई या फिर उनसे कहीं कोई गलती रह गई। उनका कहना है कि जो नामांकन पूरे नहीं पाए गए उन्हें तत्काल प्रभाव से रद कर दिया गया है। जग्गा कहते हैं कि 29 सितंबर को तीन बजे तक नाम वापस लेने की अंतिम तिथि तय की गई है। उसके बाद ही पता चलेगा कि कितने प्रत्याशी मैदान में रह गए हैं। जग्गा ने बताया कि नाम वापसी की सीमा निकलने के बाद बैलेट पेपर तैयार कराया जाएगा। 29 को ही उम्मीदवारों को सिंबल अलाट कर दिए जाएंगे। जग्गा का कहना है कि कितने मतदाता हैं, इसका पता भी नाम वापसी के बाद ही मिल पाएगा। उधर, नाम वापसी के बाद राजनीतिक गतिविधि तेज होनी स्वाभाविक है। सूत्रों का कहना है कि बागियों को बिठाने के प्रयास में सबसे ज्यादा मेहनत कांग्रेस को करनी पड़ रही है। प्रत्याशी की घोषणा में सबसे ज्यादा देर कांग्रेस ने ही लगाई। उनकी कोशिश थी कि असंतुष्ट मैदान में न उतर सकें लेकिन जो टिकट न मिल पाने से नाराज थे, वह मैदान में आ ही गए।

ईवीएम से दूर रहेगी राज्यों की पुलिस


( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
महाराष्ट्र, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में अगले माह होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की सुरक्षा का जिम्मा राज्य पुलिस को नहीं सौंपा जाएगा। मतदान के बाद ईवीएम को जिन स्ट्रांग रूम में रखा जाएगा, राज्य पुलिस को उनसे दूर रखा जाएगा। चुनाव आयोग ने कहा है कि केंद्रीय सुरक्षा बल चौबीसों घंटे स्ट्रांग रूम की सुरक्षा में तैनात रहेंगे। आयोग ने तीनों राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर केंद्रीय बलों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर लें। हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में केंद्रीय बलों की तैनाती सामान्य है। आयोग ने बीते हफ्ते महाराष्ट्र, हरियाणा और उनकी सीमा से लगे राज्यों के पुलिस प्रमुखों व गृह सचिवों के साथ बैठक कर मतदान की तैयारियों का जायजा लिया।

रविवार, 27 सितंबर 2009

किलेबंदी तेज



हरियाणा के दिग्गज नेताओं ने सूबे में अपनी चौधराहट कायम रखने के लिए अपने-अपने गढ़ों की किलेबंदी तेज कर दी है। इन दिग्गजों के सामने खुद का राजनीतिक रुतबा कायम रखने की चुनौती के साथ-साथ प्रदेश में अपनी पार्टियों के शानदार प्रदर्शन की जिम्मेदारी भी है। पूरे प्रदेश की निगाह उन चुनाव क्षेत्रों पर टिक गई, जहां से ये दिग्गज खुद चुनाव लड़ रहे हैं। हरियाणा के चुनाव में चौधराहट कायम रखने के लिए दिग्गज राजनेताओं के बीच अक्सर जंग होती आई है। इस बार विधानसभा चुनाव में करीब आधा दर्जन दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा खुद रोहतक जिले के गढ़ी-सांपला-किलोई हलके से चुनाव लड़ रहे हैं तो इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने जींद के उचानाकलां और सिरसा के ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्रों में ताल ठोंकी है। पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल की पुत्रवधू एवं पर्यटन मंत्री किरण चौधरी ने तोशाम से हुंकार भरी है। इनेलो के प्रधान महासचिव एवं राज्यसभा सदस्य अजय चौटाला डबवाली हलके से चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की धर्मपत्नी जसमा देवी हिसार जिले के नलवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं तो उनके पुत्र हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई आदमपुर से ताल ठोंक रहे हैं। प्रदेश के इन दिग्गजों का पूरा ध्यान अपने-अपने राजनीतिक गढ़ों की किलेबंदी में लग गया है। वह अपने हलकों में चुनाव प्रचार के लिए लौट आए हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला व उनके पुत्र अजय चौटाला, पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल व उनके पुत्र कुलदीप बिश्नोई और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी हालांकि पूरे प्रदेश के स्टार प्रचारक हैं, लेकिन अपने गढ़ बचाने के लिए उन्होंने अपने-अपने हलकों में मतदाताओं के बीच बैठना आरंभ कर दिया है। सिरसा और जींद जिलों में चौटाला मतदाताओं को उपलब्धियों की जानकारी दे रहे हैं तो रोहतक में मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा विकास की तस्वीर के साथ लोगों के बीच हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल पर दोहरी जिम्मेदारी है। उन्हें अपनी पत्नी जसमा देवी को जिताने की चिंता है तो साथ ही पुत्र कुलदीप बिश्नोई को सौंपी राजनीतिक विरासत बचाने की फिक्र भी सता रही है। पर्यटन राज्यमंत्री किरण चौधरी बाऊजी चौ. बंसीलाल की राजनीतिक विरासत को बरकरार रखने की जद्दोजहद में हैं। वित्त मंत्री बीरेंद्र सिंह पर हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव की भी जिम्मेदारी है, मगर उनका पूरा ध्यान अपनी सीट उचानाकलां में लगा है। इन दिग्गजों की सोच है कि यदि उनके खुद के राजनीतिक दुर्ग में चौधर कायम रहेगी तो पूरे प्रदेश में उनकी राजनीति का सिक्का चलेगा। अपनी इसी सोच के तहत दिग्गज पूरी मुस्तैदी के साथ अपने राजनीतिक गढ़ों पर ध्यान दे रहे हैं।

नामांकन भरे 91 परंतु चुनाव लड़ेगे मात्र 65 उम्मीदवार





सिरसा,( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
जागरण संवाददाता विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों द्वारा भरे गए नामांकन पत्र में कुल 65 लोगों का नामांकन पत्र सही ठहरा। जिले के पांचों हलकों से कुल 91 लोगों ने परचा दाखिल किया था जिसमें 26 का उम्मीदवारी किसी न किसी वजह से खारिज कर दिया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी व उपायुक्त युद्धवीर सिंह ने बताया कि सिरसा विधानसभा क्षेत्र से 28 उम्मीदवारों ने अपने नामाकन पत्र दाखिल किए जिनमें से 22 उम्मीदवारों के नामाकन पत्र सही पाए गए। स्वीकृत किए गए नामाकन पत्रों में काग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मण दास अरोड़ा, इनेलो के पदम जैन, हजका प्रत्याशी वीरभान मेहता, भाजपा के रोहताश जागड़ा, बसपा प्रत्याशी शाति स्वरूप, रालोद के राकेश, सभापा के विनोद कुमार, राकापा के भूपेंद्र सिंह तथा निर्दलीय प्रत्याशियों में कृष्ण कुमार, गोपाल कुमार, जमना बाई, जुगल किशोर, नसीब सिंह, पवन कुमार, बचन लाल, शाम सुंदर, सरस्वती देवी, सुनीता देवी, सुभाष चंद्र, सुरिद्र कुमार, सुरेश कुमार के नाम शामिल है। रानियां विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 19 उम्मीदवारों की सूची में से जाच के दौरान 13 उम्मीदवारों के नामाकन पत्र स्वीकृत किए गए हैं जिनमें इनेलो प्रत्याशी कृष्ण लाल, हजकां गुरमीत सिंह, काग्रेस के रणजीत सिंह, बसपा के वीर सिंह, भाजपा के शीशपाल, माकपा के स्वर्ण सिंह तथा निर्दलीय प्रत्याशियों में ओमप्रकाश, कृष्ण लाल, गगन दीप, मदन लाल, वीरेद्र कुमार, सतदेव, सागर मल के नामाकन पत्र सही पाए गए। उन्होंने बताया कि ऐलनाबाद विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 16 उम्मीदवारों में से 10 उम्मीदवारों के नामाकन पत्र जिनमें भाजपा प्रत्याशी अमीर चंद मेहता, इनेलो प्रत्याशी ओमप्रकाश चौटाला, हजकां प्रत्याशी देवीलाल बैनीवाल, बसपा प्रत्याशी प्रसन्न सिंह खोसा, काग्रेस प्रत्याशी भरत सिंह बैनीवाल, सभापा सुधीर कुमार बैनीवाल व निर्दलीय प्रत्याशियों में अनिल कुमार, इद्रपाल मिस्त्री, कमलेश शर्मा, राजेराम कासनिया के नामाकन स्वीकृत किए गए है। डबवाली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 16 उम्मीदवारों में से 12 सही पाए गए। जिनमें इनेलो प्रत्याशी अजय सिंह चौटाला, हजकां प्रत्याशी कुलदीप सिंह, काग्रेस प्रत्याशी डा. केवी सिंह, बसपा प्रत्याशी प्रीत महेद्र सिंह, भाजपा प्रत्याशी रेणु, सभापा के प्रत्याशी रणबीर सिंह तथा निर्दलीय में गगनदीप, जगदेव सिंह, मंजुबाला, रविंद्र सिंह, साधुराम, सुनाईना के नामाकन पत्रों को मंजूर किया गया है। कालावाली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 12 में से 8 सही पाए गए। जिनमें बसपा प्रत्याशी मेजर सिंह, भाजपा प्रत्याशी रतन लाल, हजकां प्रत्याशी राजेश कुमार, काग्रेस के प्रत्याशी सुशील कुमार, शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशी चरणजीत सिंह, सपा के राजकुमार तथा निर्दलीय ओमप्रकाश व जसवीर सिंह के नामाकन स्वीकृत किए गए है। बाकी उम्मीदवारों के नामाकन पत्र रद्द कर दिए गए है।

तीन अलग-अलग मामलों में हुई डेरा प्रमुख की पेशी


सिरसा,( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
: हत्या के मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को अंबाला स्थित सीबीआई की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सिरसा में पेश किया गया। शनिवार को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को पत्रकार छत्रपति हत्याकांड मामले में अंबाला स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सिरसा कोर्ट में पेश किया। सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश एएस नारंग के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए मृतक पत्रकार छत्रपति के पुत्र एवं मुख्य गवाह अंशुल छत्रपति पेश हुए। दोनों पक्षों के वकीलों में करीब छह घंटे बहस हुई। सुनवाई के दौरान रणजीत हत्याकांड में शामिल जसबीर सिंह, अवतार सिंह व इंद्रसेन तथा छत्रपति प्रकरण में आरोपी कुलदीप, निर्मल व किशन लाल भी पेश हुए। दूसरी ओर साध्वी यौन शोषण व रणजीत हत्याकांड मामले में भी दोनों पक्षों में बहस हुई। छत्रपति हत्याकांड में सीबीआई की विशेष अदालत के जज एएस नारंग ने 24 अक्टूबर व रणजीत हत्याकांड व साध्वी यौन शोषण मामले में आगामी तिथि छह अक्टूबर की तारीख मुकर्रर की है।

आरोपी के घर ढाई माह से पड़ी है लाश


अहमदाबाद( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
गुजरात के साबरकांठा जिले में एक आदिवासी युवक की लाश ढाई माह से अंतिम संस्कार का इंतजार कर रही है क्योंकि संदिग्ध हालात में मरे युवक के परिजन मौताणा (मौत के बदले मुआवजा) की मांग करते हुए शव आरोपी के घर डाल आए है। पुलिस-प्रशासन ने मामला संज्ञान में आने के बाद दोनों पक्षों में समझौते के प्रयास तेज कर दिए हैं। साबरकांठा जिले के पोशिना थाने की पुलिस को एक जुलाई को किसी ने सूचना दी कि खेड़ब्रम्हा गांव के पास हरणाव नदी के किनारे एक युवक का शव पड़ा है। सिर में चोट का निशान देख पुलिस ने हत्या की आशंका जताते हुए अज्ञात लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया। इसी दरम्यान मृतक की शिनाख्त मीठीवेड़ी गांव निवासी कानजी लाडूभाई परमार के रूप में की गई। कानजी के पिता ने दो तीन हफ्ते शव घर पर रखा। इसके बाद नजदीकी गांव खरडि़या निवासी कालूभाई और उसके साथियों पर कत्ल का आरोप लगाते हुए शव उसके घर में छोड़ दिया। दो माह से ज्यादा समय तक लाश घर में पड़ी होने की सूचना पर डीएम ने पुलिस को दोनों पक्षों में राजीनामा कराकर शव का अंतिम संस्कार कराने के निर्देश दिए हैं।

शनिवार, 26 सितंबर 2009

हड्डियां पहचान बन गईं गाँव की




खोदा टीला, निकली हड्डी... और मशहूर हो गया वडेरा गाँव. लोग अब इसे हड्डी वाला गाँव कहते हैं. किसी से बस हड्डी वाला गाँव पूछिए और लोग आपको वडेरा का रास्ता बता देंगे.

मोहम्मदी से आठ किलोमीटर पश्चिम में वडेरा गाँव जाने के लिए सड़क गड्ढों वाली है और ड्राइवर डर-डर कर गाड़ी चला रहा था. लेकिन दोनों तरफ धान, गन्ने और केले के हरे भरे खेत आँखों को सुकून देने वाले थे.

वडेरा पहुंचते-पहुंचते मुझे शाम हो गई. गाड़ी गाँव में रोक हम खेतों की तरफ चले. पुराना शिव मंदिर, फिर कुछ खेत और तालाब. बीच में लगभग एक एकड़ का खेत बिल्कुल अलग दिख रहा था.

एक दलित विश्राम लाल को 35 साल पहले इस जमींन का पट्टा मिला था मगर जमीन पर बड़ा टीला था. विश्राम लाल के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो जमीन को समतल कर उपजाऊ बनाते.

अब भारत सरकार ने नरेगा कार्यक्रम में दलित और छोटे किसानों के खेत में भूमि संरंक्षण के काम को भी शामिल कर लिया है. दो हफ्ते पहले यहाँ करीब डेढ़ सौ मजदूर विश्राम लाल के खेत पर फावड़ा चला रहे थे. अचानक वहां नरकंकाल मिलने लगे. एक नहीं, दो नहीं,... बहुत से. मजदूरों ने कुछ कंकाल और हड्डियां बगल के तालाब में फेंक दीं.

फिर किसी ने पुलिस को सूचना कर दी. मोहम्मदी से पुलिस और तहसील वाले आए और कुछ हड्डियां वह साथ उठा ले गए. सरकारी अस्पताल के एक डाक्टर बलवीर सिंह को पता लगा तो कुछ हड्डी वो भी ले गए. फिर पुलिस वालों के काम बंद करा दिया और जो कंकाल दिख रहे थे, उन्हें मिट्टी से दबवा दिया. मगर मैं जब वहां पहुंचा तो एक जगह कुछ हड्डियां पड़ी थीं. लोग मुझे वहां ले गए. पता चला बहुत से लोग कुछ हड्डियां ले गए हैं, निशानी के लिए.

और फिर बात से बात...

आसपास के लोगों में कई तरह की किंवदन्तियाँ ज़ोर पकड़ रही हैं. कुछ लोग ये कह रहे हैं कि इसी इलाक़े में विराट की राजधानी हुआ करती थी, तो कुछ का कहना है कि लखनऊ की बेग़म हजरत महल और अंग्रेज़ों के बीच यहीं लड़ाई हुई थी और बाद में वो नेपाल चली गईं.

कुछ गाँववालों ने अपने पुरखों के हवाले से बताया कि करीब सौ साल पहले यहाँ लाल बुखार या मलेरिया जैसी महामारी आई थी, जिसमे बहुत लोग मरे थे. हो सकता है कि ये कंकाल उन्हीं के हों.

किसी ने पुलिस को सूचना कर दी. मोहम्मदी से पुलिस और तहसील वाले आए और कुछ हड्डियां वह साथ उठा ले गए. सरकारी अस्पताल के एक डाक्टर बलवीर सिंह को पता लगा तो कुछ हड्डी वो भी ले गए. फिर पुलिस वालों के काम बंद करा दिया और जो कंकाल दिख रहे थे, उन्हें मिट्टी से दबवा दिया. मगर मैं जब वहां पहुंचा तो एक जगह कुछ हड्डियां पड़ी थीं. लोग मुझे वहां ले गए. पता चला बहुत से लोग कुछ हड्डियां ले गए हैं, निशानी के लिए

दूसरे दिन दोपहर में लखनऊ से पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से राजीव द्विवेदी और विमल तिवारी जांच पड़ताल के लिए आए. लेकिन उनकी दिलचस्पी हड्डियों में कम, ऐसी पुरातात्विक सामग्री में ज़्यादा थी जिससे समय निर्धारण में मदद मिले. कुछ मिटटी के बर्तन के टुकड़े उन्होंने लिए. फिर लोगों के आग्रह पर पास के एक सिद्ध मंदिर टीले से कुछ पुरानी ईंटें देखी.

इस बीच एक उत्साही युवक ने खेत से किसी कंकाल के जबड़े के कुछ दांत बटोर कर दिखाए. एक युवक फावड़ा लेकर खुदाई करने लगा कि कोई और कंकाल मिला जाए.

इस बीच मोहम्मदी से शौकत अली और रईस अहमद आ गए और विस्तार से बताने लगे कि कैसे वर्ष 1857-58 में फैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने बेगम हज़रत महल के नेतृत्व में अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी. मगर कई लोग उनसे तर्क करने लगे कि उन्होंने अपने पुरखों से इस गाँव में यहाँ ऐसी लड़ाई की बात नहीं सुनी.

अब तक कई सौ लोग जमा हो गए. इनमे खेत के मालिक विश्राम लाल भी थे. विश्राम ने मुझे बड़े विस्तार से बताया कि कैसे उनके खेत से ढेर सारे कंकाल मिले.

विश्राम लाल बहुत खुश थे कि इन हड्डियों की वजह से वह और उनका खेत मशहूर हो गया. इतने अफ़सर, पत्रकार, फोटोग्राफर यहाँ पहले कभी नहीं आए थे.

उधर जब स्थानीय अफ़सरों को पता चला कि पुरातत्व वाले बिना उन्हें बताए आये और चले गए तो उन्हें बहुत बुरा लगा. दरअसल तहसीलदार ने ही जिला मजिस्ट्रेट के ज़रिए पुरातत्व वालों को बुलाया था .

पुरातत्व अधिकरियों ने लौटकर अपनी रिपोर्ट दे दी है और उसमें यही कहा गया है कि इस स्थान का कोई ख़ास सांस्कृतिक महत्व नहीं समझ में आता.

हालाँकि उनका कहना है कि केवल हड्डियों को देखकर कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है. इसके लिए मानवविज्ञानियों की मदद ली जानी चाहिए. और जब तक मानव विज्ञानी आकर इन हड्डियों का परीक्षण नहीं करते, तब तक इन कंकालों का रहस्य ज़मीन में ही दफ़्न रहेगा.

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

India hails Moon mission 'find'


India hails Moon mission 'find'

India's Chandrayaan-1 probe carried US equipment to the Moon
India's inaugural Moon mission has been hailed as a "grand success" by the head of India's space agency, after helping find evidence of water on the Moon.

Indian Space Research Organisation (Isro) chief G Madhavan Nair said a spacecraft probe found more water on the Moon "than was expected."

The mission was terminated last month after communication was lost with the orbiting spacecraft.

The craft was launched last October for a two-year mission of exploration.

Data from three spacecraft, including India's Chandrayaan probe, has shown that very fine films of H2O coat the particles that make up the lunar dirt, US space agency Nasa announced.

The quantity is tiny but could become a useful resource for astronauts wishing to live on the Moon, scientists say.

"We truly believe it is a path-breaking finding. But this is just the beginning," Mr Nair said.

"Indians should be proud of the fact that the Chandrayaan enabled the discovery of water on the Moon," he said.

Indian scientists have welcomed the discovery and said more studies needed to be done to find out how much water was available and whether it was fit for human consumption.

'Significant'

"The results suggest that frost rather than water is present in the form of a thin film on the lunar surface. The quantity and its distribution across the Moon is still an open question," K Kasturirangan, a former chief of Isro told the Press Trust of India press agency.

"Ultimately, in the long run if humankind has to go and inhabit the Moon, one of the important requirements is that you should have adequate water for survival," he said.

An Indian scientist working in Nasa said it was a "significant discovery"

"It is a very significant finding if we ever are to venture out to set up a base anywhere in the solar system, the Moon is the nearest destination," Amitabha Ghosh said.

The Indian media has also hailed the role of Chandrayaan in the finding.

One Big Step for India, A Giant Leap for Mankind, headlined The Times Of India newspaper.

"[The finding] has helped shake off the failure tag from the Chandrayaan project that was aborted last month," the paper said.

The mission was expected to cost 3.8bn rupees (£45m; $78m), considerably less than Japanese and Chinese probes sent to the Moon last year.

But the Indian government's space efforts have not been welcomed by all.

Some critics regard the space programme as a waste of resources in a country where millions still lack basic services.

परमाणु अप्रसार पर प्रस्ताव पारित




संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने परमाणु निशस्त्रीकरण और परमाणु अप्रसार के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है.

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के इस विशेष सम्मेलन की अध्यक्षता की.

प्रस्ताव 1887 के तहत उन सभी देशों से परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करने को कहा गया है, जिन्होंने अभी तक इस संधि को स्वीकार नहीं किया है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अगले साल इस मुद्दे पर समीक्षा करने के लिए एक सम्मेलन करेगा.

लंबे समय से हमारी ये नीति रही है कि पूरी दुनिया से परमाणु हथियार ख़त्म किए जाएँ. लेकिन हम ऐसी कोई संधि स्वीकार नहीं कर सकते जिसके तहत कुछ देशों को ऐसे हथियार रखने की इजाज़त मिलती हो.
शशि थरूर

परमाणु अप्रसार और निशस्त्रीकरण के लिए पारित इस प्रस्ताव में सभी देशों से अपील की गई है कि वे अपने वादे को पूरा करें.

हालांकि भारत ने इस संधि को भेदभावपूर्ण बताते हुए इस पर दस्तख़त करने से इनकार किया है.

भारतीय विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने शुक्रवार रात पत्रकारों से कहा, "लंबे समय से हमारी ये नीति रही है कि पूरी दुनिया से परमाणु हथियार ख़त्म किए जाएँ. लेकिन हम ऐसी कोई संधि स्वीकार नहीं कर सकते जिसके तहत कुछ देशों को ऐसे हथियार रखने की इजाज़त मिलती हो."

भारत और इस संधि पर हस्ताक्षर न करने वाले देशों का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया है और बाक़ी देशों पर अप्रसार संधि थोप रहे हैं.

नया प्रस्ताव
अमरीका की अगुआई में पारित इस प्रस्ताव का रूस और चीन ने भी समर्थन किया.

ओबामा की प्रतिबद्धता
हमने जो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया है, उसमें हमने उस लक्ष्य को हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, जिसमें परमाणु हथियारों के बिना दुनिया की बात है

इस प्रस्ताव में परमाणु हथियारों का फैलाव रोकने और अप्रसार को बढ़ावा देने की कोशिशें तेज़ की जाएँगी.

वर्ष 1945 में सुरक्षा परिषद के गठन के बाद ये सिर्फ़ पाँचवीं बार है कि सुरक्षा परिषद की बैठक सम्मेलन के स्तर पर हुई है.

साथ ही बराक ओबामा अमरीका के पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने सुरक्षा परिषद के किसी सम्मेलन की अध्यक्षता की है.

अध्यक्ष के रूप में ओबामा ने प्रस्ताव पारित होने की घोषणा की. उन्होंने कहा, "हमने जो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया है, उसमें हमने उस लक्ष्य को हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है, जिसमें परमाणु हथियारों के बिना दुनिया की बात है."

ओबामा ने कहा कि इस प्रस्ताव से सुरक्षा परिषद समझौते को एक व्यापक आधार दिया जा रहा है ताकि परमाणु ख़तरों को कम किया जा सके.

उन्होंने कहा कि किसी भी बड़े शहर में एक परमाणु हथियार का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर विनाश ला सकता है.

ओबामा ने कहा कि ये किसी एक देश को निशाना बनाने की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून खोखले वादे नहीं और संधियों को लागू कराने की आवश्यकता है.

ये जटिल मामला है क्योंकि देशों के बीच अविश्वास का स्तर बहुत ज़्यादा है. लेकिन इसे किया जाना ज़रूरी है
रूसी राष्ट्रपति मेदवेदेव

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने नेताओं का धन्यवाद दिया कि वे परमाणु हथियार पर सुरक्षा परिषद के इस विशेष सम्मेलन में शामिल हुए.

रूस के राष्ट्रपति डिमित्रि मेदवेदेव ने कहा है कि हमारा मुख्य लक्ष्य उन देशों के बीच समस्याओं की गाँठों को खोलना है, जो परमाणु अप्रसार और परमाणु निशस्त्रीकरण चाहते हैं.

उन्होंने कहा, "ये जटिल मामला है क्योंकि देशों के बीच अविश्वास का स्तर बहुत ज़्यादा है. लेकिन इसे किया जाना ज़रूरी है."

राष्ट्रपति ओबामा के सहयोगी इस प्रस्ताव के पारित होने को उनके पूरे परमाणु एजेंडे का समर्थन मानते हैं, जो उन्होंने इस साल अप्रैल में प्राग में अपने भाषण में रखा था.

उन्होंने उस समय परमाणु हथियारों के बिना दुनिया के लिए प्रतिबद्धता जताई थी.

Pakistani elders killed in ambush


Dr sukhpal sawant khera

Seven pro-government tribal elders have been killed by the Taliban in north-west Pakistan, police say.

The victims of the Taliban ambush in the town of Janikhel included tribal chief Malik Sultan, who was active in raising a militia against militants.

Janikhel has often been troubled by militant violence and is close to the tribal region of North Waziristan where the Taliban is known to be active.

The area has been under periodic curfews by the army since June.

"Taliban militants attacked the tribal elders who were on their way to a nearby village to mediate in a dispute between local people," local police chief Iqbal Marwat told the AFP news agency.


See a map of the region

"All seven, who were on foot, were killed on the spot while the militants fled," he added.

The attack happened in Bannu district.

Residents said that Malik Sultan was part of a government-sponsored initiative to form militias in the north-west to combat the Taliban.

Correspondents say the militias are seen as a way of offsetting the fact that the Pakistani army lacks adequate equipment and counter-insurgency specialists. They are also seen as a way of protecting villages and remote communities.

परिवारवाद की जय!



हरियाणा की राजनीति में अभी भी परिवारवाद का बोलबाला कायम है। पिछले सालों की अपेक्षा इस बार राजनीति में परिवारवाद कम तो हुआ है, मगर यह पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है। सगे-संबंधियों के थोक के भाव टिकट काटे जाने के बावजूद कांग्रेस में नेताओं के रिश्तेदारों को सबसे अधिक टिकट मिले हैं। भाजपा और हजकां ने नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देने में कंजूसी बरती है। बसपा और इनेलो ने कांग्रेस से कम और भाजपा व हजकां से अधिक नेताओं के रिश्तेदारों को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस में करीब दो दर्जन दिग्गजों ने अपने पारिवारिक सदस्यों के लिए हाईकमान से टिकट मांगे थे। यह नेता अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए लंबे अरसे तक दिल्ली में डटे रहे, लेकिन कांग्रेस ने जिताऊ और राजनीति में स्थापित उम्मीदवारों को ही टिकट दिए हैं। बिजली मंत्री रणदीप सुरजेवाला, पर्यटन मंत्री किरण चौधरी और कांग्रेस के प्रांतीय कार्यकारी प्रधान कुलदीप शर्मा भी हालांकि कांग्रेस में परिवारवाद की राजनीति के मजबूत उदाहरण हैं, लेकिन इन दिग्गजों को प्रदेश में राजनीति करते हुए लंबा अरसा हो गया है। यह दिग्गज न केवल कांग्रेस की राजनीति में रम चुके हैं बल्कि जनता के बीच प्रतिष्ठापित भी हो गए हैं। विधानसभा चुनाव में रणदीप, किरण और कुलदीप तीनों किस्मत आजमा रहे हैं। हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई और इनेलो के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अजय चौटाला प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से छाए हुए हैं। चौटाला और बिश्नोई दोनों विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। यह दोनों किसी परिचय के मोहताज नहीं है, लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि परिवारवाद की राजनीति से जुड़ी है। दिग्गजों की खुद की पारिवारिक पृष्ठभूमि को यदि नजरअंदाज कर दिया जाए तो कई ऐसे नेताओं को चुनाव लड़वाया जा रहा है, जिनकी कोई न कोई पारिवारिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है। कांग्रेस ने टोहाना से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स. हरपाल सिंह के पुत्र परमवीर सिंह को टिकट दिया है। पर्यटन मंत्री किरण चौधरी के ननदोई सोमवीर सिंह को लोहारू से चुनाव लड़वाया जा रहा है। बहादुरगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र जून के पिता विधायक रह चुके हैं। कोसली के कांग्रेस उम्मीदवार यादवेंद्र सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पूर्व मंत्री खुर्शीद अहमद के पुत्र आफताब अहमद को कांग्रेस ने नुहूं से टिकट थमाया है। पूर्व सांसद रिजक राम के पुत्र जयतीर्थ दहिया को राई और निवर्तमान विधायक बलबीर पाल शाह को पानीपत शहर से टिकट दिया गया है। बलबीर पाल हालांकि निवर्तमान विधायक हैं और अपने बूते अलग पहचान बनाई है, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि परिवारवाद की राजनीति से मेल खाती है। भाजपा ने पूर्व मंत्री जोगेंद्र जोग के पुत्र जितेंद्र जोग को बरवाला से चुनाव लड़वाया है। भाजपा, बसपा, हजकां और इनेलो की सूची में ज्यादातर चेहरे नए हैं। कांग्रेस को छोड़कर इन चारों पार्टियों ने हालांकि पुराने मोहरों पर भी दांव खेला है, मगर ज्यादातर नए उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का मौका प्रदान किया है। हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई ने अपनी मां जसमा देवी को नलवा से टिकट दिया है। पूर्व सांसद जंगबीर सिंह के पुत्र कमल सिंह को तोशाम से चुनाव लड़वाया जा रहा है। हजकां ने करीब आधा दर्जन पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों पर भी दांव खेला है। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने पूर्व मंत्री रिसाल सिंह के पुत्र राजबीर सिंह को मुलाना से टिकट थमाया है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सतबीर कादियान की धर्मपत्नी बिमला कादियान को पानीपत ग्रामीण से चुनाव लड़वाया जा रहा है। जुलाना से पूर्व मंत्री विधायक के पुत्र परमिंदर ढुल को टिकट दिया गया है। बहुजन समाज पार्टी ने हालांकि ज्यादातर नए चेहरे चुनाव मैदान में उतारे हैं, मगर इस दल में भी परिवारवाद की राजनीति के लक्षण दिखाई पड़े हैं। बसपा सुप्रीमो मान सिंह मनहेड़ा खुद व परिवार के किसी सदस्य के चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं, मगर पूर्व मंत्री कंवरपाल के पुत्र अनिल राणा को असंध से चुनाव लड़वाया जा रहा है। पूर्व चेयरमैन चौ. देवी सिंह के पुत्र हरविंद्र कल्याण को घरौंडा से टिकट दिया गया है जबकि पूर्व मंत्री के पुत्र रवि चौधरी को साढौरा के चुनावी अखाड़े में उतारा गया है।

Chautala, file papers , Sukhbir gives thumbs up to INLD


Sirsa, September 24(Dr Sukhpal)
Former Chief Minister and INLD supremo Om Prakash Chautala, Haryana Industries Minister LD Arora and MDLR Airlines chairman Gopal Goyal, alias Gopal Kanda, were among 37 candidates to have filed their nominations from five assembly seats in Sirsa district today.

Chautala filed his nomination as INLD candidate from Ellenabad. Aditya Chautala, son of his youngest brother Jagdish Chander, filed papers as his covering candidate
Punjab Deputy Chief Minister Sukhbir Singh Badal alleged today that the demand for a separate SGPC for Haryana was being raised by some vested interests to mislead the Sikh masses in the state.

Sukhbir Badal was talking to mediapersons in Ellenabad where he had come to be with former Haryana CM Om Prakash Chautala for the filing of his nomination papers.The INLD was sure to do well in the polls, he said.

Sukhbir maintained.Certain parties in Haryana were misleading people by propagating that Sikhs in Haryana were demanding a separate SGPC for this state which was totally wrong.

चौटाला व बादल ने रोड शो से किया शक्ति प्रदर्शन



ऐलनाबाद( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- इनेलो सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री चौ.ओमप्रकाश चौटाला का ऐलनाबाद विधानसभा सीट से नामाकन भरने का समारोह उम्मीद के अनुसार ही भव्य व विशाल रहा। नामाकन भरने के साथ-साथ चौ.ओमप्रकाश चौटाला ने सिरसा रोड पर इनेलो के चुनावी कार्यालय का उद्घाटन भी किया, वहीं रोड शो के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन भी किया। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान उनके साथ पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल भी उपस्थित रहे। गौरतलब है कि चौ.ओमप्रकाश चौटाला के नामाकन समारोह को लेकर कार्यकर्ताओं ने जोरदार तैयारिया कर रखी थी। दोपहर करीब 12 बजे चौटाला ऐलनाबाद पहुंचे तथा अभय सिंह चौटाला, पवन बैनीवाल, चौ.अभय सिंह खोड़ आदि वरिष्ठ इनेलो नेताओं को साथ लेकर उपमंडल अधिकारी कार्यालय में आए। उनके नामाकन पत्र दाखिल करने से ठीक पहले पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल भी एसडीएम कार्यालय पहुंच गए। इसके बाद चौटाला ने ऐलनाबाद से इनेलो प्रत्याशी व उनके भतीजे आदित्य चौटाला ने उनके कवरिग प्रत्याशी के रूप में नामाकन पत्र दाखिल किया। तत्पश्चात वे इनेलो कार्यकर्ताओं के काफिले के साथ चुनावी कार्यालय पहुंचे तथा रिबन काटकर कार्यालय का उद्घाटन किया। यहा उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रदेश से काग्रेस का सूपड़ा साफ करने का आह्वान किया तथा कहा कि काग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान आम लोगों पर जो जुल्म किए है, उसका बदला चुकाने का यही एक समय है। चौटाला ने कहा कि समता मूलक समाज की स्थापना सिर्फ इनेलो सरकार में ही हो सकती है, जहा हर किसी को उसका हक मिल सकेगा। पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल ने कहा कि जिस प्रकार पंजाब में काग्रेस के कुशासन से दुखी जनता ने अकाली दल को फिर से सत्ता सौंपी थी, ठीक वही स्थिति इन चुनावों में हरियाणा में होगी जब काग्रेस राज से दुखी आम लोग इनेलो के हाथ सत्ता की बागडोर सौंपेंगे। जनसभा के बाद इनेलो कार्यालय से एक रोड-शो का आयोजन किया गया, जो पंचमुखी मोड़, गाधी चौक, चौ.देवीलाल चौक, गुरुद्वारा रोड से होता हुआ तलवाड़ा चौक तक पहुंचा। रोड शो में चौ.ओमप्रकाश चौटाला व सुखवीर सिंह बादल ने खुली जीप में सवार होकर जनता का अभिनंदन किया तथा विधानसभा चुनावों में चश्मे के निशान पर मोहर लगाने का आह्वान किया। इस अवसर पर इनेलो के हलका अध्यक्ष चौ.अभय सिंह खोड़, पवन बैनीवाल, विजय सिंह खोड़, मोहन लाल झोरड़, भागीराम, युवा इनेलो के ब्लाक अध्यक्ष संदीप झोरड़, अंजनी कुमार लढ़ा, रवि लढ़ा, विनोद स्वामी, कर्मशाणा के सरपंच सुखवीर साहू, राजीव साहू, हरि कृष्ण गोयल, सरपंच सुखपाल चोटिया, गोपी राम कंबोज, अनिल भादू आदि सहित अनेक नेता-कार्यकर्ता भी उपस्थित थे।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

सेक्स से मिलेगा कप




( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-


भारतीय क्रिकेट टीम के प्रदर्शन को प्रभावशाली बनाने के लिए खिलाडियों को सेक्स की सलाह दी गई है.

इस वक़्त भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका में चैम्पियंस ट्राफी में हिस्सा लेने के लिए गई हुई है.

भारतीय अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर में कहा गया है कि टीम के कोच गैरी क्रिस्टन ने खिलाड़ियों को एक गुप्त दस्तावेज़ दिया है जिसकी हेडलाइन है “क्या सेक्स प्रदर्शन बेहतर बनाता है? ”

अखबार के मुताबिक इसके उत्तर में लिखा गया है “हाँ, सेक्स करने से प्रदर्शन बेहतर होता है और इसलिए बिना किसी झिझक आगे बढ़ें और आनंद लें”.

अखबार कहता है कि उस दस्तावेज़ में ये भी लिखा है कि सेक्स करने से टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता है जिसकी वजह से ताकत, आक्रामकता और मुकाबला करने का हौसला भी बढ़ जाता है.

अखबार आगे लिखता है कि दस्तावेज़ में सेक्स न कर पाने की सूरत के बारे में कहा गया है कि कई महीने तक इससे वंचित रहने पर

टेस्टोस्टेरोन का स्तर पुरुषों और महिलाओं दोनों ही में गिर जाता है और आक्रामकता भी कम हो जाती है.

खिलाड़ियों को ये भी बताया गया है कि अगर सेक्स करने के लिए कोई साथी मौजूद न हो तो एक तरीका ये भी है कि अकेले ही अपने साथी के साथ होने की कल्पना करते हुए जो संभव हो वो करें.

अखबार में ये भी दावा किया गया कि सेक्स के अलावा इस दस्तावेज़ में खानपान, देश के सामाजिक ताने बाने और खुद पर विश्वास करने जैसे विषयों पर भी बात की गई है.

India chimney collapse kills 22

Dabwali,(Dr sukhpal)
At least 22 workers have been killed and scores are feared trapped after a building collapsed in the Indian state of Chhattisgarh, officials say.

Officials say that a chimney caved in on more than 100 workers during construction work at a thermal power plant.

The accident happened in the town of Korba, 250km (155 miles) from the state capital, Raipur.

The plant is being built by Bharat Aluminium Co Ltd (Balco).

Balco is a unit of London Stock Exchange-listed Vedanta Plc, whose business activities are mostly in India.

"It's a massive accident," Ratanlal Dangi, district superintendent of police, told Reuters news agency.

"We have retrieved 20 bodies so far. Still many more are trapped under the collapsed chimney's debris. Massive rescue and relief operations are under way."

Waiting for news

Rescue workers are expected to work through the night to try and reach those still trapped underneath the rubble.

They are being helped by other construction workers as well as local residents.

The families of many missing workers have gathered at the site waiting anxiously for word of their relatives.



It is still not clear what caused the accident. All the reports say the area has been experiencing heavy rain and storms.

Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh said a judicial investigation had been ordered into the accident.

He also announced compensation for the victims

State officials said the management of the company building the plant are likely to face charges.

A recent report by the UN's International Labour Organisation said that nearly 50,000 Indians die from work-related accidents or illness every year.


टूट नहीं रही जाति की बेडि़यां



( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- : भले ही जातिवाद को असभ्य समाज की देन माना जाता है और चुनाव आयोग ने भी जातीय प्रतीक के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है मगर इसके बावजूद सच यह है कि आज भी भारतीय लोकतंत्र में चुनाव के वक्त जातीय समीकरणों का तिकड़म लगाया जाता है। हरियाणा में भी टिकट देने, मंत्री बनाने व मुख्यमंत्री बनाने तक में जातीय तालमेल व नुमाइंदगी को देखा जाता है। हरियाणा में आर्य समाज का आंदोलन भी क्रूर जाति व्यवस्था के सम्मुख बौना पड़ गया। पहली नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। तबविधानसभा में कुल 54 सदस्य थे। सही मायने में दूसरी विधानसभा ही नवसर्जित हरियाणा की अपनी विधानसभा थी। इसके लिए 9 फरवरी 1967 को चुनाव हुए। तब से आज तक के परिणामों पर नजर डालें तो जातीय आधार पर प्रतिनिधित्व का आंकड़ा सिद्ध करता है कि ताकतवर जातियों में अपना वर्चस्व बढ़ाने की प्रवृति में लगातार इजाफा हो रहा है। दूसरी विधानसभा जो मुश्किल से 15 महीने चली, इसमें सर्वाधिक जनसंख्या वाली जाट जाति के 23 विधायक थे। इसके अलावा 13 बनिया, आठ पंजाबी, सात यादव, दो ब्राह्मण, दो रोड, एक सिख, एक बिश्नोई व 15 दलित विधायक थे। दूसरी विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 81 थी। तीसरी विधानसभा के लिए 12 व 14 मई, 1968 को मतदान हुआ। चुनाव के बाद जो तस्वीर सामने उभरी उसमें जाट 22, पंजाबी 8, बनिया 10, यादव 7, बिश्नोई दो, सैनी 2 व दलित पंद्रह की संख्या में विधायक बने। राज्य की चौथी विधानसभा के लिए 11 मार्च, 1972 को चुनाव हुए। इस बार जाट 23, बनिया 11, पंजाबी 8, यादव 6, ब्राह्मण 5, मुस्लिम 2, गुज्जर 2, राजपूत एक, रोड़ 2, सिख 2, बिश्नोई 2, सैनी एक, कंबोज एक तथा 15 दलित विधायक बने। 5वीं विधानसभा में विधायकों की संख्या नब्बे हुई तो जाट विधायकों की संख्या भी काफी बढ़ गई। इस बार 32 जाट, 8 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 17 दलित विधायक चुने गए। इस चुनाव में आरक्षित सीटों की संख्या 17 हो गई थी। छठी विधानसभा के लिए मई 1982 में चुनाव हुए। इस बार भी जाट विधायकों की संख्या 32 ही थी जबकि बनिया समुदाय की संख्या 5वीं विधानसभा का आधा रह गई यानी कि महज चार विधायक। सातवीं विधानसभा में 26 जाट, 4 बनिया, 9 पंजाबी, 5 यादव, 8 ब्राह्मण व आरक्षित सीटों पर 17 दलित विधायक चुने गए। आठवीं विधानसभा जिसका कार्यकाल 1991 से 1996 तक रहा, में जाटों की संख्या बढ़कर 31 हो गई। इसमें 4 बनिया, 11 पंजाबी, 4 यादव, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 5 गुर्जर, 3 राजपूत, एक रोड़, 2 सिख व 17 दलित विधायक चुने गए। 9वीं विधानसभा जो 2000 तक चली में 28 जाट, 9 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 6 ब्राह्मण, 3 मुस्लिम, 2 गुज्जर, 3 राजपूत, 2 सिख, 3 बिश्नोई, 2 सैनी, एक कंबोज, एक सुनार व 17 दलित विधायक थे। दसवीं विधानसभा में 32 जाट, 4 बनिया,11 पंजाबी, 6 यादव व 17 दलित विधायक विधानसभा पहुंचे। इस विधानसभा में 32 जाट विधायकों में से 21 इनेलो के खाते में तो 6 कांग्रेसी थे। दो निर्दलीय विधायक भी जाट समुदाय से चुने गए। ग्यारहवीं विधानसभा में जाटों की संख्या घटकर 26 हो गई। इस बार गुज्जर 6, ब्राह्मण 8, बनिया 4, यादव 5, बिश्नोई 3, पंजाबी 8, मुस्लिम 3, राजपूत 4, दलित 17 तथा अन्य से छह विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे।

इनेलो केगढ़ में कांग्रेस को ताकत बढ़ाने की चुनौती


कांग्रेस की पहली सूची आने के बाद विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान ने एकाएक गति पकड़ ली है। इनेलो अपना गढ़ सुरक्षित रखने की कवायद में जुटी है तो कांग्रेस के समक्ष अपना प्रदर्शन बेहतर करने की चुनौती है। सिरसा जिले में इंडियन नेशनल लोकदल व कांग्रेस के बीच वर्चस्व बरकरार रखने व छीनने की लड़ाई बनी हुई है। आंकड़ों के आइने में जिला के सभी पांचों विधानसभा हलकों को उतारें तो वर्ष 1982 से लेकर अब तक जिले के चार हलकों में लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल का ही दबदबा बना रहा है। हां यह अलग बात है कि जिला मुख्यालय अर्थात सिरसा विधानसभा सीट पर इस दल की दाल कम गली है। इस विधानसभा सीट से राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने अपना वर्चस्व कायम रखा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कांग्रेस सरकार के उद्योग मंत्री लक्ष्मण दास अरोड़ा यहां 1982 से ही अपना सिक्का जमाते रहे हैं। हालांकि 1982 में उन्होंने बतौर आजाद उम्मीदवार 30.61 फीसदी वोट लेकर अपनी जीत दर्ज की लेकिन वर्ष 1991, 2000 तथा 2005 में तीन बार बतौर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जीत दर्ज की। एक अकेली सिरसा विधानसभा सीट को अगर अपवाद मानकर चलें तो शेष चार विधानसभा सीटों ऐलनाबाद, डबवाली, दड़बा व रोड़ी में इंडियन नेशनल लोकदल का ही दबदबा देखा गया है। ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में तो लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल के प्रत्याशियों ने वर्ष 1982 से अब तक पांच बार जीत हासिल की है। एक पहलू यह भी है कि इस विधानसभा सीट से भागीराम ने लोकदल या इनेलो के प्रत्याशी के रूप में चार बार चुनावी जीत का सेहरा अपने सिर बांधा है। उन्होंने 1982 व 1987 में लोकदल, 1996 में तत्कालीन समता पार्टी तथा वर्ष 2000 में इंडियन नेशनल लोकदल से विजय प्राप्त की। वर्ष 2005 में भी इनेलो की जीत का सिलसिला जारी रहा और यहां से डा. सुशील इंदौरा विजयी हुए। परिसीमन से पूर्व दड़बा कलां विधानसभा क्षेत्र से तो लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल ने चार बार विजयी पताका फहराई है जबकि कांग्रेस को महज दो बार जीत मिली है। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस हलके से इस दल की महिला प्रत्याशी विद्या बैनीवाल ने तीन बार जीत हासिल की है। वर्ष 1987 में उन्होंने बहादर सिंह को 30.06 फीसदी के मुकाबले 67.69 फीसदी मतों से पराजित किया। इसी तरह उन्होंने वर्ष 1996 तथा 2000 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: प्रह्लाद सिंह व डा. केवी सिंह को पराजित कर वर्चस्व बरकरार रखा। डबवाली में भी लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल ने चार बार जबकि कांग्रेस ने दो बार विजय का वरण किया है। यहां से कांग्रेस की प्रत्याशी रही संतोष चौहान सारवान ने वर्ष 1991 में जनता पार्टी के ज्ञान चंद को पराजित किया। इंडियन नेशनल लोकदल ने यहां वर्ष 2000 तथा 2005 में लगातार जीत दर्ज की है। इससे पूर्व 1987 में लोकदल तथा 1996 में तत्कालीन समता पार्टी से मनीराम ने पार्टी को जीत दिलाई। जहां तक परिसीमन से पूर्व रोड़ी विधानसभा क्षेत्र के इतिहास का सवाल है तो यहां भी लोकदल, समता पार्टी या इनेलो के रूप में चार बार जीत हासिल हुई है। इनेलो सुप्रीमो ने 1996 से 2005 तक लगातार तीन बार जीत दर्ज की थी।

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