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शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

बढ़त हासिल करने की कोशिश



भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच दिल्ली में शनिवार को तीसरा वनडे मैच खेला जाएगा. सात मैचों की श्रृंखला में अभी तक दोनों देश एक-एक मैच जीतकर बराबरी पर हैं.

नागपुर में खेले गए दूसरे एक दिवसीय मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 99 रनों से हरा दिया है जबकि पहले मैच में भारत चार रनों से हार गया था.

अपने पिछले मैच में मिली ज़बरदस्त जीत के बाद भारतीय टीम के हौसले बुलंद हैं. नागपुर में अच्छे प्रदर्शन के बाद भारतीय बल्लेबाज़ों से ख़ासी उम्मीदें रहेंगी. इस मैच में धोनी ने शानदार शतक लगाया था तो गंभीर और रैना ने भी अच्छी बल्लेबाज़ी की थी.

वहीं ऑस्ट्रेलियाई टीम के कुछ खिलाड़ी घायल हैं जिस कारण रिकी पोंटिंग की चिंता बढ़ गई है.ब्रेट ली चोटिल हैं और वे ऑस्ट्रेलिया लौट रहे हैं. वे पूरी श्रृंखला से बाहर हो गए हैं.

ब्रेट ली के श्रृंखला से बाहर होने पोंटिंग ने कहा, "ज़ाहिर है हमें ली की कमी खलेगी. नागपुर मैच में भी ली की कमी का एहसास हो रहा था." जेम्स होप्स भी पूरी तरह फ़िट नहीं है और उनके खेलने के आसार भी कम ही लग रहे हैं.

हालांकि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने ये मानने से इनकार किया कि नागपुर में जीत के बाद भारतीय टीम ज़्यादा लय में है. उनका कहना था, मैं इन सब चीज़ों को नहीं मानता. यहाँ चीज़ें बहुत जल्दी बदल जाती हैं.

तीसरे मैच की ख़ास बात ये है कि अगर सचिन तेंदुलकर 79 रन बना लेते हैं तो वे अपने 17 हज़ार रन पूरे कर लेंगे. अब तक वनडे मैचों में उन्होंने कुल 16921 रन बनाए हैं.

आग के ख़ुद ब ख़ुद बुझने का इंतज़ार






जयपुर में गुरुवार की रात लगी आग का धुँआ शहर में शुक्रवार की सुबह दूर-दूर से दिखाई दे रहा था.

राजस्थान के जयपुर में गुरुवार रात को तेल डेपो में लगी आग पर काबू नहीं पाया जा सका है. तेल कंपनी के अधिकारी और दमकल दस्ते अब आग के ख़ुद ब ख़ुद बुझने का इंतज़ार कर रहे है.

हालत को देखते हुए आस-पास की आबादी को हटा दिया गया है और कई रेलगाड़ियो के मार्ग में बदलाव किया गया है क्योंकि जयपुर और कोटा को जोड़ने वाली रेल पटरी उस इलाके से होकर गुज़रती है जहाँ तेल डिपो है.

सीतापुर में शिक्षा केन्द्रों को बंद रखा जा रहा है और कोई दो हज़ार लोगों ने सरकारी आश्रय स्थलों में शरण ली है.सरकार के मुताबिक इस आग ने अब तक सात लोगों की जान ली है और छह लोग लापता हैं.

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने मोके का दौरा किया और हादसे की जाँच का आदेश दिया है.

सरकार ने महेश लाल की अगुवाई में एक जाँच समिति गठित की है ,जो अगले 12 दिनों में जांच कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

मुरली देवड़ा ने कहा, “ये समिति भविष्य में ऐसे हादसे न हो इस बारे में सुझाव देगी.”

भारी नुकसान

राज्य के गृह मंत्री शांति धारीवाल ने बताया की ज्वलनशील पदार्थों के भंडारण को शहरों से दूर स्थापित किया जाएगा. जयपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट कुलदीप रांका ने बीबीसी को बताया कि ३६ घायल विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं.

कोई दो हज़ार लोगो ने सरकारी आश्रय स्थलों में शरण ली है. बड़ी संख्या में लोग अपने रिश्तेदारों के यहाँ पहुंचे हैं.

तेल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी सार्थिक ने बताया की देश के विभिन्न भागों से दमकल विशेषज्ञों को बुला लिया गया है लेकिन आग इतनी विकराल है की कोई उसके पास नहीं जा सकता.

लिहाज़ा आग के ख़ुद कमज़ोर पड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. तेल अधिकारी ने बताया की कम से कम उनके छह कर्मचारी आग लगने के बाद से लापता हैं.

उनमें से एक हरीश कुमार घटना के बाद से लापता है.उनके परिजनों ने बताया कि हरीश कुमार आग लगने वाले दिन नौकरी पर गए थे, तब से उनका कोई पता नहीं है.

हरीश कुमार के बेटी नेहा कहती है, “हम जगह जगह उन्हें तलाश रहे हैं.परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है. हर अस्पताल की खाक छान मारी मगर हर जगह से निराश लौटना पड़ा.”

नहीं सज पाई बारात...

करोली के विजय कुमार उस तेल डिपो के पास एक फैक्ट्री में काम करते थे और इस माह उनकी बारात सजनी थी. लेकिन आग ने उसे लील लिया.विजय का शव लेकर गाँव लौट रहे उनके भाई बने सिंह कहने लगे, “हम उसकी शादी की तैयारी कर रहे थे,अब शव लेकर लौट रहे हैं.”

जिस तेल डिपो में आग लगी है वो सीतापुर में है और ये एक औद्योगिक केंद्र भी है. एक बड़े निर्यातक राजीव अरोरा कहते है, “वहां कोई एक हज़ार फैक्ट्रियाँ हैं और डेढ़ लाख लोग काम करते हैं.इन फैक्ट्रियों को भरी नुकसान पहुंचा है.”

आग की लपटें कभी प्रबल तो कभी थोडी़ निर्बल पड़ती दिखाई देती है.मगर आग बुझ नहीं रही है. वहां शक्तिमान सेना है, दमकल दस्ते हैं, वैज्ञानिक उपकरण हैं, लेकिन उस निर्मम आग के आगे किसी का बस नहीं चल रहा है.

लिहाज़ा आग को उसकी नियति पर छोड़ दिया गया है कि वो इतना जले, इतना जले की जवाला खुद शांत हो जाए.

कभी दुर्गा, कभी मोहिनी





मार्क टली को सोनिया गांधी में इंदिरा की छाप दिखती है.



इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के ज़ोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी.

भारत के किसी अन्य प्रधानमंत्री से लोग इतना भय नहीं खाते थे जितना उनसे लेकिन यहां मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि वो बहुत मोहक भी हो सकती थीं. और इंदिरा गांधी के साथ भेंट ऐसी भी हो सकती थी जैसी किसी प्राध्यापिका की फटकार.

वो आमतौर पर विदेशी संवाददाताओं के प्रति अपनी विकारत को छिपाने का कोई प्रयास नहीं करती थीं. उनके बारे में उनकी राय थी कि वो हमेशा भारत को ग़लत ढंग से प्रस्तुत करते हैं. लेकिन उन्होने मुझे जो अंतिम इंटरव्यू दिया उसके अंत में मुस्कुराते हुए कहा था, “आप अपना टेप रेकार्डर बंद कर दीजिए और फिर बहस करते हैं कि आपके विचार में इस देश में क्या हो रहा है”.

इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता मज़बूत करने में वक़्त लगा. जब वो प्रधानमंत्री बनी थीं तो शुरु के दिनों में संसद में विपक्ष उनसे बहुत सवाल जवाब किया करता था. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया उन्हे ‘गूंगी गुड़िया’ कहा करते थे. जब कभी वो लड़खड़ातीं तो उनके सहयोगी नोट लिख लिख कर उन तक पहुंचाते कि वो क्या जवाब दें.

सरकार में मौजूद सहकर्मी ऐसा व्यवहार करते थे जैसे वो उनके हाथों में मिट्टी हों जिसे वो जैसे चाहे ढाल लें. लेकिन अंत में इंदिरा गांधी ने कॉंग्रेस के मुखियाओं को चुनौती देकर और पार्टी का विभाजन करके वो साहस दिखाया जो उनके कार्यकाल के दौरान उनकी पहचान बन गया.

उन्होने समय से पहले चुनाव की घोषणा की और उन्हे बुरी तरह हराया जिन्होने उन्हे आंकने में भूल की थी. जब पाकिस्तान की सेना ने ढाका में भारतीय सेना के आगे आत्म समर्पण किया और एक नए राष्ट्र बांगलादेश का जन्म हुआ तो इंदिरा गांधी की सत्ता पर सवाल उठने बिल्कुल बंद हो गए.

लेकिन बांगलादेश की लड़ाई के बाद के सालों में इंदिरा गांधी ने दिखाया कि ज़रूरी नहीं कि सत्ता और सुशासन हमेशा साथ साथ चलें. सत्तर के दशक में उनकी वामपंथी आर्थिक नीतियों ने देश को लाल फीताशाही में बांध दिया.

इंदिरा गांधी ने इस बात की अनदेखी की, कि केन्द्रीकृत योजना, उससे उपजी नौकरशाही और उससे निजी पहल के क्षेत्र में जो बाधाएं आती हैं, दूसरे देश इन सब को नकार चुके हैं. वो उस भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाईं जो लाल फीताशाही के साथ आता है और भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को भी रोकने में असफल रहीं.

अपने को बचाने के लिए उन्होने अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के सभी सिद्धांतो के ख़िलाफ़ जाकर देश में आपात काल की घोषणा कर दी जिससे देशवासियों की आज़ादी पर पहरा लग गया और प्रशासन की ताक़त और बढ़ गई.

फिर 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी की ज़बरदस्त हार के बाद आपात काल का अंत हुआ. जब वो फिर सत्ता में आईं तो उन्हे दोबारा उथल पुथल का सामना करना पड़ा. मुम्बई में मज़दूरों का विद्रोह, असम में जातिवादी तनाव, नक्सलवाद का पुनरुत्थान और पंजाब में उथल पुथल जिसका अंत ऑपरेशन ब्लू स्टार और उनकी हत्या के साथ हुआ.

कांग्रेस पर पकड़

इंदिरा गांधी अपने बेटों के साथ



उन्होने कॉंग्रेस पार्टी पर अपनी पकड़ और कस ली और मनमाने ढंग से राज्य सरकारों को बरख़ास्त करके विपक्ष को कमज़ोर करने के प्रयास किए. लेकिन उनकी मुश्किलों का अंत नहीं हो सका.

इन सब मुश्किलों के बावजूद जिन्होने उन्हे देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचार करते देखा था वो जानते थे कि देश की ग़रीब जनता पर उनकी कितनी गहरी पकड़ थी.

मेरी नज़र में इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी ग़लती ये थी कि वो भूल गईं कि तानाशाह शासकों की तानाशाही उनके नीचे काम करने वालों तक पहुंचती है. और जैसे जैसे वो नीचे की ओर उतरती जाती है उसका ग़लत इस्तेमाल बढ़ता जाता है.

उन्होने प्रशासनिक सेवाओं को अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया और उन्होने ‘लाइसेंस परमिट राज’ बना लिया और उसके साथ फैला भ्रष्टाचार. उन्होने पुलिस को उनके विरोधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अधिकार दिए और पुलिस उसका इस्तेमाल जिस तिस को गिरफ़्तार करने के लिए करने लगी.

उन्होने निचले दर्जे की समूची नौकरशाही को परिवार नियोजन लागू करने का अधिकार दिया और उसका नतीजा हुआ अनिवार्य नसबंदी अभियान. उन्होने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को उनके नाम पर काम करने का अधिकार दिया और उन्होने कॉंग्रेस पार्टी में बचे-खुचे लोकतंत्र को भी नष्ट कर दिया.

वो सभी संस्थाएं जिन्हे सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकना चाहिए उनकी अवमानना हुई. फिर भी इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इंदिरा गांधी एक साहसी महिला थीं और देश की ग़रीब जनता के दिल में उनके लिए विशेष स्थान था.

ग़रीबों के लिए संघर्ष करने की उनकी छवि के कारण ही नेहरू गांधी वंश इतने लम्बे समय तक टिक पाया है. जिसने भी सोनिया गांधी को अभियान के दौरान देखा है वो मानेगा कि वो अपनी सास की नक़ल करती हैं, उन्ही की तरह तेज़ चलती हैं, हाथ हिलाती हैं, हथकरघे से बुनी साड़ियां पहनती हैं और आक्रामक भाषण देती हैं.

'सुरक्षा परिषद सदस्यता का हक़दार'



अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता मिलनी चाहिए.

दिल्ली में एक सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने चरमपंथ का मुद्दा भी उठाया और कहा कि भारत-अमरीका दोनों वैचारिक स्तर पर चरमपंथियों के ख़िलाफ़ वैचारिक लड़ाई लड़ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई जीतने के लिए भारत और अमरीका को मिलकर काम करना होगा.

बुश ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रवेश का समर्थन किया. उनका कहना था, “भारत ने विश्व पटल पर एक मज़ूबत लोकतंत्र के रूप में जगह बनाई है. भारत में सर्व धर्म लोकतंत्र है, यहाँ शांति और सहनशीलता का माहौल है.”

मनमोहन मेरे अच्छे मित्र
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जॉर्ज बुश भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपने मधुर संबंधों का ज़िक्र करना भी नहीं भूले. उनका कहना था, “मुझे आप लोगों के प्रधानमंत्री बेहद पसंद हैं. वे बुद्धिमान हैं और एक अच्छे इंसान हैं. उन्हें अपना दोस्त कहते हुए मुझे गर्व महसूस होता है.”

जॉर्ज बुश वर्ष 2006 में भारत आए थे जब दोनों देशों ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और अन्य रणनीतिक मसलों पर भी बातचीत हुई थी.

भारत के प्रति अपना प्यार ज़ाहिर करते हुए बुश ने कहा, “राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई है. लेकिन भारत के प्रति मेरा प्यार नहीं बदला है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रति अमरीका का अलग ही संबंध है.”

अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा को लेकर उन्होंने अपनी राय कुछ यूँ ज़ाहिर की, “व्हाइट हाउस के लिए ओबामा मेरी पहली पसंद नहीं है लेकिन मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं. मैं उनकी आलोचना पर ज़्यादा समय ज़ाया नहीं करूंगा, उनके पहले से ही काफ़ी आलोचक हैं.”

छाई की खाई में जिंदगी की परछाई


पांच-पांच रुपये के लिए यहां जिंदगी को जोखिम में डाला जाता है। रोजी का जुगाड़ कब किस पर मौत का पहाड़ बनकर टूटे किसी को पता नहीं। पल भर में जिंदगी यहां हमेशा के लिए दफन हो सकती है.. लेकिन मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी यहां जिंदगी की जद्दोजहद में हंस कर भुलाना पड़ता है। मिनी मेट्रो कहलाने वाले इस शहर में रोज जिंदगी को जोखिम में डाल कर मेहनत के पसीने से पेट की आग बुझाने वाले ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं। कभी इनकी जिंदगी को करीब से देखना हो तो बिष्टुपुर वोल्टास बिल्डिंग से दिखने वाले छाई के पहाड़ (कंपनी से निकलने वाले अयस्क के अवशेष से बने पहाड़) पर चले जाएं। यहां आपको पांच-पांच रुपये के लिए छाई की खाई में जिंदगी की परछाई तलाशते लोगों की अच्छी खासी तादाद देखने को मिल जाएगी। छाई के पहाड़ को खोद कर ये अपनी जिंदगी के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं। इस दौरान अक्सर छाई का यह पहाड़ इनपर मौत बनकर टूट पड़ता है। खोदते पहाड़ निकलती चुहिया दरअसल इस छाई के पहाड़ में से ये लोग बोरा भर-भर कर वो जरूरी चीज निकालते हैं जिससे अन्य घरों में चूल्हा जलता है। क्षेत्रीय भाषा में इसे गुंडी कहते हैं। एक तरह से यह गुंडी, कोयले की ही तरह होता है जिसे चूल्हा जलाने में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह प्रति बोरी 2 से 5 रुपये में बिकता है। चूंकि शहर में स्थित कंपनियों से निकलने वाले अयस्कों के अवशेष से बना यह पहाड़ वर्षो पुराना है, इसलिए इसके नीचे दबे अवशेष शेष पृष्ठ 17 पर मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी हंस कर भुलाना पड़ता है

जमशेदपुर में दोहरा सकती है जयपुर की कहानी


ऑयल साइडिंग पर पेट्रोल चोरी बन सकती है त्रासदी
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जयपुर में तो केवल एक ही कंपनी के तेल डिपो में लगी आग ने तबाही मचा दी, मगर जमशेदपुर में जहां एक ही स्थान पर तीन कंपनियों का सुरक्षित तेल भंडार है वहां एक छोटी सी चिंगारी कितना बड़ा दावानल भड़का सकती है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यहां रेलवे ऑयल साइडिंग से होने वाली पेट्रोल-डीजल की चोरी कभी भी भयानक हादसे को जन्म दे सकती है। शहर में बर्मामाइंस इलाके के लगभग आधा किलोमीटर की परिधि में इंडियन ऑयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन के तेल डिपो हैं। हालांकि इन कंपनियों के डिपो में तो आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम हैं, लेकिन रेलवे ऑयल साइडिंग पर वैगन से तेल की पंपिंग के दौरान होने वाली चोरी कभी भी जयपुर जैसे भयानक अग्निकांड को जन्म दे सकती है। दरअसल, रेलवे ऑयल साइडिंग में ट्रैक पर लगे रेल टैंकरों से पाइप लाइन के जरिए डिपो तक तेल पहुंचाया जाता है। इसके लिए रेल ट्रैक तक हर कंपनी ने अपने पाइप बिछा रखे हैं। इन पाइप में एक वाल्व लगा होता है। इस वाल्व को खोल रेल टैंकर से तेल पाइप में पहुंचता है। तेल चोरी का खेल यहीं से शुरू होता है। हर टैंकर के नीचे प्लास्टिक शीट बिछी टोकरी रखी होती है। इसी में तेल की चोरी की जाती है। हालांकि इस खेल में आरपीएफ जवान, तेल कंपनी के कर्मचारियों की भी मिलीभगत रहती है। इनकी शह पर ही स्थानीय लोग डिपो तक पहुंचने वाले पाइपों से तेल चोरी करते हैं। इस दौरान एक छोटी सी चिंगारी से भड़की आग तीनों तेल डिपो को लपेटे में ले सकती है। यही नहीं बर्मामाइंस स्थित तीनों कंपनियों के तेल डिपो के चारों तरफ आग लगने का पर्याप्त सामान भी है। यहां झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्तियां बसी हैं, तो तेल डिपो के पास ही लकड़ी की टाल भी हैं। डिपो क्षेत्र में जगह-जगह सड़क छाप होटल व चाय ठेले भी हैं। इनमें बराबर आग जलती रहती है। हालांकि प्रावधान के अनुसार तेल डिपो के आसपास बस्तियां नहीं बसी होनी चाहिए। और जिस दौर में यहां तेल डिपो स्थापित हुए थे, उस वक्त आसपास कोई बस्ती थी भी नहीं। बाद में समय के साथ-साथ सार्वजनिक जमीन पर अवैध अतिक्रमण होता गया और आज यहां चारो तरफ बस्तियां बसी हुई हैं। इन बस्तियों में बसे गरीब तबके के लोगों की रोटी पेट्रोल-डीजल की चोरी से ही चलती है। ऑयल साइडिंग से चोरी पर अधिकारियों ने झाड़ा पल्ला रेलवे ऑयल साइडिंग में पटरी पर खड़े ट्रैंकरों से पेट्रोल-डीजल की चोरी रोक पाने में विवशता जाहिर करते हुए तीनों कंपनियों के तेल डिपो के अधिकारियों ने पल्ला झाड़ लिया। विभागीय प्रावधान का हवाला देते हुए नाम न छापने की शर्त पर भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन, इंडियन ऑयल कारपोरेशन व हिंदुस्तान पेट्रोलियम तेल डिपो के अधिकारियों ने कहा कि डिपो के बाहर होने वाली चोरी को रोकने की जिम्मेदारी आरपीएफ के साथ-साथ जिला पुलिस व प्रशासन की है, इससे हम लोगों को कोई लेना-देना नहीं। 80 के दशक में टैंकर विस्फोट से मची थी तबाही रेलवे ऑयल साइडिंग से होने वाले पेट्रोल-डीजल की चोरी सन् 1980 के दशक में भयंकर तबाही मचा चुकी है। जमशेदपुर के लोग आज भी उस दिन को याद करते हैं, जब ऑयल साइडिंग से भड़की आग की लपटें टाटानगर रेलवे स्टेशन के 1 नंबर प्लेटफार्म तक आ पहुंची थीं। इस दौरान रेलवे के ऑयल टैंकर में विस्फोट हो गया था। हालांकि इस घटना का कारण ऑयल वैगन की लूज शंटिंग को बताया गया था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि तेल चोरी ही इसकी वजह थी।

आवारा सांड की चपेट में वृद्धा

डबवाली( डॉ सुखपाल)-

कालोनी रोड स्थित अन्नपूर्णा मन्दिर के निकट एक आवारा साड ने टक्कर मारकर बीमार व वृद्ध महिला को घायल कर दिया। मिली जानकारी मुताबिक वार्ड नम्बर 13 निवासी वृद्ध महिला रेशमा देवी सिविल अस्पताल से दवाई लेकर अपने घर वापिस आ रही थी कि अन्नपूर्णा मन्दिर के निकट खडे़ एक आवारा साड ने जोरदार टक्कर मार दी। जिससे वह दूर जा गिरी और घायल हो गई। वहा पर उपस्थित दुकानदारों ने आवारा साड के चंगुल से वृद्ध महिला को छुड़वाया व समीप स्थित सिटी क्लीनिक में उपचार के लिए पहुचाया तथा महिला के परिजनों को सूचित किया। वृद्ध महिला का उपचार कर रहे डॉ. डीडी सचदेवा ने बताया कि महिला के सिर में गहरी चोट आई है तथा उन्हे टाकें लगाए गए है। महिला के परिजनों व उपस्थित दुकानदारों ने प्रशासन व स्थानीय गौशाला की प्रबन्ध समिति से माग की है कि नगर में घूम रहे आवारा पशुओं को गौशाला में बन्द करे।

आग से हजारों का सामान खाक

डबवाली( डॉ सुखपाल)-


नवरत्न बासल पेट्रोल पम्प के सामने ट्रक यूनियन के पूर्व प्रधान गुरचरण फौजी वाली गली में स्थित एक मकान में आग लगने से हजारों की नगदी व मकान में पड़ा सारा सामान जल कर राख हो गया । प्राप्त जानकारी अनुसार बेनामी राम पुत्र हर प्रसाद खुरजा निवासी भूरा भवन आरेवाले के मकान में बतौर किरायेदार है तथा स्वयं कूलर मिस्त्री है और बठिण्डा स्थित एक प्राईवेट फैक्ट्री में कार्यरत है। बीती सायं लगभग 7 बजे बेनामी का परिवार अपने सम्बन्धी के निवास कॉलोनी रोड पर जन्म दिन की पार्टी में शामिल होने के लिए गया हुआ था तथा घर में बने मन्दिर में माँ की जोत जल रही थी। रात्रि 8 बजे के लगभग पड़ोस में रह रही बिन्द्र कौर को कुछ जलने की दुर्गन्ध महसूस हुई तो उसने देखा कि साथ लगते कमरे में धुआ उठ रहा है, उसने इसकी सूचना तुरन्त बेनामी के परिवार को दी। सूचना मिलते ही बेनामी के पारिवारिक सदस्य घर पहुचे तथा कमरे का ताला खोला गया तो पूरे कमरे में आग फैली हुई थी। पड़ोसियों तथा आस पड़ोस के लोगों ने बाल्टियों से पानी डालकर आग पर काबू पाया। लेकिन जाता तब तक कमरे में मन्दिर तथा कमरे में पड़ा कीमती सामान जल कर राख हो चुका था। बेनामी राम के पुत्र प्रवेश ने बताया कि मन्दिर में 8 हजार की नकदी और गुल्लक में रखे 10 व 5 के नोट भी आग की भेंट चढ़ गए, कमरे में रखा अन्य सामान जिसमें बेड, गद्दे बिस्तर व कीमती कपड़ों के जलने से 15-20 हजार रुपये के नुकसान का अनुमान है। इस इमारत में रह रहे अन्य परिवारों के सदस्यों पुरुषोत्तम दास, रानी देवी, सुरेश कुमार ने प्रशासन से हादसे का शिकार व्यक्ति की आर्थिक मदद करने की गुजारिश की है।

परंपरा के मरहम से भरेंगे धरती के घाव


जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से धरती को बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। सभी देश इसे महसूस कर रहे हैं। लेकिन कोई सर्वमान्य रास्ता नहीं सूझ रहा है। ऐसे में क्या परंपरा के मरहम से धरती के घाव भरे जा सकते हैं और उसे फिर से उसके मूल स्वरूप में लौटाया जा सकता है? कोई माने या न माने, अपने देश के आदिवासियों का ऐसा ही मानना है। लेकिन उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए अगर उन्हें पूरी छूट दी जाए तो वह अपने परंपरागत ज्ञान और दक्षता से धरती के जख्म ठीक कर सकते हैं। हाल ही में देश भर के आदिवासी समूहों ने एक घोषणापत्र जारी किया जिसमें उन्होंने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए समाधानों का जिक्र किया है। ये समाधान उनके परंपरागत ज्ञान और पारिस्थितिकी से करीबी संबंधों पर आधारित हैं। इन समूहों में हर वर्ग जैसे कृषि, वानिकी, चारागाह और मत्स्य क्षेत्र से जुड़े आदिवासी शामिल थे। बैठक में एकमत से चेतावनी दी गई कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के नाम पर परंपरागत ज्ञान और प्राचीन विधियों को हटा कर नई प्रौद्योगिकियां अपनाने से हालात केवल बिगड़ेंगे, सुधार नहीं होगा। नगालैंड एक आदिवासी वेचितियु कहते हैं, हमारा समुदाय जलवायु परिवर्तन के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं है। लेकिन हम अपनी महारत से इसका हल निकाल सकते हैं। हम ऐसा करने के लिए पूरी छूट चाहते हैं और हमें अवांछित नीतियों के माध्यम से कोई हस्तक्षेप भी नहीं चाहिए। एक अन्य महिला तनुश्री ने बताया हमारी परंपरागत जल प्रबंधन प्रणाली हमारे जलस्रोतों को स्वच्छ बनाए रखती है। इस संसाधन का हम चतुराई से इस्तेमाल करते हैं जिससे भूजल पर कोई दबाव नहीं पड़ता। यही वजह है कि हमें सूखे और जल संकट के दौरान समस्या नहीं होती। तनुश्री पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन इलाके में रहती है। मुन्नार की खाड़ी से आई एक मछुवारन सेल्वी ने कहा कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से अधिक दोहन किया जा रहा है। ए संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और कुछ मामलों में नष्ट भी हो चुके हैं। इससे हमारे सामने संकट उत्पन्न हो गया है। सेल्वी ने कहा हमारे पास परंपरागत सुरक्षा के लिए बालू के टीले हैं, समुद्री तट हैं हरे-भरे जंगल हैं और कोरल रीफ भी हैं। यह सब कुछ पीढि़यों की विरासत है। हम इन संसाधनों के संरक्षण का महत्व केवल सह अस्तित्व के लिए ही जरूरी नहीं समझते बल्कि मौसम के मिजाजों से बचाव के लिए दीर्घकालिक उपायों के तौर पर भी इनकी जरूरत है

महफूज और प्यारी जगह मां की गोद


मां का आंचल सबसे न्यारा सिटी ब्यूटीफुल के कलाग्राम में चल रहे पहले नेशनल क्राफ्ट मेले में शुक्रवार को थक जाने के बाद इस मासूम के लिए मां की गोद से महफूज और प्यारी जगह भला क्या हो सकती थी।

भगवान भरोसे तेल डिपो


हादसे के बाद सरकारी अमले को सुरक्षा मजबूत करने की सुध आई
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देश में 21 रिफाइनरियां, 300 से ज्यादा तेल व गैस डिपो तथा हजारों रसोई गैस एजेंसियों के स्टोर का विशाल नेटवर्क। इन सबके बावजूद सुरक्षा के ऐसे इंतजाम कि माचिस की एक चिंगारी से न केवल सैकड़ों लोग काल के गाल में समा जायें बल्कि अरबों रुपये की हानि भी देश को उठानी पड़े। जयपुर स्थित इंडियन आयल के तेल डिपो में लगी आग केवल एक बानगी है कि इतने महत्वपूर्ण व संवेदनशील स्थानों पर सरकार के सुरक्षा इंतजाम कितने कमजोर हैं। ये हालात तब हैं जब केवल पेट्रोलियम भंडारण के स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए बहुत ही बड़ा सरकारी अमला लगा हुआ है। जयपुर से लौटे पेट्रोलियम मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि पेट्रोलियम क्षेत्र में हमने सुरक्षा को कभी वह महत्व दिया ही नहीं जिसकी जरूरत होती है। इस बारे में कड़े मानक हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डिपो पर सुरक्षा संबंधी मानकों का उल्लंघन किया जाता है। शुरुआती तथ्य से ऐसा लगता है कि जयपुर हादसा के पीछे कोई मानवीय भूल वजह रही है। लिहाजा आने वाले दिनों में मानवीय भूल की संभावनाओं को भी न्यूनतम करने के लिए कदम उठाने होंगे। सबसे पहले तो पेट्रोलियम क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का मानकीकरण करना होगा। इसके लिए तेल उद्योग सुरक्षा महानिदेशालय (ओआईएसडी) को कानूनी अधिकार देना होगा। ओआईएसडी पेट्रोलियम कंपनियों के लिए सुरक्षा मानक तय करता है लेकिन उसके पास अपने मानकों को लागू करवाने का कानूनी अधिकार नहीं है। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अब ओआईएसडी को कानूनी अधिकार देने पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। अभी तक सरकारी तेल कंपनियां इस प्रस्ताव का विरोध कर रही थी। उनका कहना था कि इससे उनके अधिकार का हनन होगा। लेकिन सरकार की मंशा ओआईएसडी के मानकों को सरकारी व निजी कंपनियों के लिए अनिवार्य करने की है। जयपुर कांड से तेल डिपो की स्थापना के लिए स्थान के चयन को लेकर भी दोबारा विचार करने की जरूरत है। दरअसल, अधिकांश डिपो आज से 15-20 वर्ष पहले बनाए गए और उस समय उन्हें आबादी से दूर बनाया गया लेकिन इस दौरान बस्ती धीरे-धीरे इन डिपो के आस-पास के इलाकों में पहुंच गई है। जयपुर की घटना ने साबित कर दिया है कि आबादी के करीब होने से नुकसान की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुंबई, दिल्ली, चेन्नई स्थित पेट्रोलियम उत्पादों के डिपो आबादी से बेहद करीब हैं। उक्त अधिकारी के मुताबिक पेट्रोलियम क्षेत्र में आग पर पहले कुछ घंटे में ही काबू नहीं हो पाता तो इसमें काफी मुश्किलें आ जाती हैं। लिहाजा यह व्यवस्था करनी होगी कि अगर किसी डिपो में आग लगती है तो उस पर शुरुआत में ही काबू किया जाए। इसके अलावा पेट्रोलियम आग को बुझाने के लिए आवश्यक पदार्थो (फोम, रसायनिक पाउडर और पेट्रोलियम जेली) का स्टाक भी बढ़ाना होगा। यदि जयपुर में लगी आग को बुझाने के लिए फोम, पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल होता तो देश में इनके कुल स्टाक का आधा खत्म हो जाता।

शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009


अगले साल अक्टूबर में दिल्ली में होने वाले राष्ट्रकुल खेलों के लिए बैटन रिले की शुरुआत लंदन स्थित बकिंघम पैलेस से हो गई। पैलेस में आयोजित बैटन रिले समारोह के दौरान शूटिंग स्टार अभिनव बिंद्रा, पूर्व कप्तान कपिल देव, टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा व अन्य दिग्गज खिलाड़ी।

ले मशाल चल पड़े हैं खिलाड़ी मेरे देश के


एशियाई देशों की शान भारत के सम्मान की मशाल गुरुवार को दुनिया के 70 देशों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता का परचम लहराने के अभूतपूर्व सफर पर निकल गई। भारतीय खेल इतिहास में आजका यह दिन हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। दिल्ली में अगले वर्ष अक्टूबर में होने जा रहे राष्ट्रकुल खेलों के लिए यहां ऐतिहासिक बकिंघम पैलेस में हुए भव्य समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के हाथों क्वींस बैटन ग्रहण करने के साथ ही परदेस में भी इन खेलों का बिगुल बज गया। रिले के साथ ही देश की पहचान बन चुके इन खेलों का सफर भी विधिवत रूप से आरंभ हो गया। इस मौके पर राष्ट्रपति पाटिल ने महारानी एलिजाबेथ के नाम अपने संदेश का बाक्स बैटन में रखा। इसके बाद उन्होंने यह बैटन खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल को सौंपी जिन्होंने आगे इसे भारतीय ओलंपिक महासंघ व राष्ट्रकुल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को सौंप दिया। कलमाड़ी से बैटन अभिनव बिंद्रा ने ग्रहण की जिन्होंने बीजिंग ओलंपिक की व्यक्तिगत वर्ग की निशानेबाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। राष्ट्रकुल खेलों की सबसे पुरानी परंपरा माने जाने वाली क्वींस बैटन रिले 340 दिनों तक कुल एक लाख 90 हजार किमी का सफर तय करेगी। मेजबान देश भारत के भीतर सौ दिनों में इसका 20 हजार किलोमीटर का सफर होगा। यह किसी मेजबान देश का अब तक का सर्वाधिक सफर है। बैटन 1 लाख 70 हजार किमी का अंतरराष्ट्रीय सफर जमीन हवा और समुद्र से तय करने के बाद 25 जून को पाक की वाघा सीमा के जरिये भारत में प्रवेश करेगी। भारत आगमन से पूर्व यह रिले वेल्स, उत्तरी आयरलैंड, जर्सी, साइप्रस, नाइजीरिया, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, सेंट लूसिया, जमैका, कनाडा, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, श्रीलंका, बांग्लादेश व पाक आदि देशों का सफर तय करेगी। बकिंघम पैलेस में आयोजित समारोह में नीली ड्रेस में सजे स्कूली बच्चों ने विश्व एकता के लिए ऋगवेद के मंत्र सुनाए। नामी खेल सितारों ने समारोह में बिखेरी चमक इन ऐतिहासिक पलों के बीच मानो ऐसा लगा रहा था कि सितारे जमीं पर उतर आए हों। बैटन रिले समारोह में अभिनव के अलावा ओलंपिक कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज विजेंद्र कुमार, पहलवान सुशील कुमार ने भी अपनी चमक बिखेरी। इतना ही नहीं गुजरे जमाने के धावक व 1958 राष्ट्रकुल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता उड़न सिख मिल्खा सिंह,

हमें तो था पता अब जानेगा सारा जहां


( डॉ सुखपाल)-

विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में अगुवा होने का दावा करने वाले पश्चिमी देशोंके डींग हांकने के दिन लद गए हैं। अब सारी दुनिया जानेगी कि हम क्या थे। अगले साल होने वाले कामनवेल्थ खेलों के समय यहां आने वाले विदेशियों को इस बात का अहसास कराया जाएगा कि विज्ञान के कई क्षेत्रों में भारत सदियों पहले जो कर चुका है, उसकी जानकारी उन्हें बहुत बाद में हुई। विदेशियों को अपने ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराने की तैयारियों के सिलसिले में नई दिल्ली के राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र में विज्ञान और तकनीकी धरोहरों की प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी में शामिल किए गए प्रमाणों के मुताबिक सैकड़ों साल पहले उत्तर भारत में सर्जरी द्वारा कुरूप नाक को सुंदर आकार दिया जा रहा था। इस तकनीक में व्यक्ति के माथे की त्वचा को हटाकर इस तरह स्थिर किया जाता था जिससे नई मुखाकृति फिर से बन जाती थी। यह वह समय था जब दंड स्वरूप अपराधियों की नाक काट ली जाती थी। ऐसे समय में सर्जरी द्वारा ही भारत में उस कटी नाक को फिर से सही आकार दिया जाता था। हाल ही में हमारे चंद्रयान ने जब चंद्रमा पर पानी के मौजूदगी की जानकारी दी तो पश्चिमी जगत चौंक उठा क्योंकि उनकी नजर में हमारी छवि ठगों और जादूगरों के देश की है। जबकि हकीकत है कि चांद पर पानी के आविष्कार से सदियों पहले भी हम कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हमारे खाते में दर्ज हैं। आपको जानकर हैरत होगी कि ईसा से 600 साल पहले दुनिया के पहले सर्जन हिंदुस्तान की सरजमीं पर पैदा हुए थे। आज सर्जरी के विभिन्न रूपों को विकसित करने का मूल श्रेय इनको ही जाता है। ये महान सर्जन थे सुश्रुत। हर क्षेत्र में कुलीन मानने वाले यूनानी भी हमसे चिकित्सा के सर्जरी क्षेत्र में पीछे हैं। यूनानियों के फादर आफ मेडिसिन हिप्पोक्रेटस से डेढ़ सौ साल पहले सुश्रुत भारत में सर्जरी को नया आयाम दे रहे थे। जबकि हिप्पोक्रेटस की प्रसिद्धि का यह आलम है कि आज भी डाक्टरों को इनके नाम की शपथ दिलाई जाती है। दुनिया को सर्जरी का ज्ञान देने वाले सुश्रुत ने अपने चिकित्सकीय विचारों, विधियों और तकनीकों पर सुश्रुत संहिता नामक एक ग्रंथ भी लिखा है। उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार इस ग्रंथ में 650 अलग अलग दवाओं, 300 किस्म के आपरेशन, 42 तरह की शल्य चिकित्सा विधियों सहित 121 प्रकार के उपकरणों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस प्रदर्शनी के आयोजकों और मदद करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार दवाओं का सबसे प्राचीन उल्लेख भारतीय ग्रंथ वेदों में मिलता है। वेदों को ईसा से एक हजार से तीन हजार साल पहले के बीच में लिखा गया था। वैज्ञानिकों के अनुसार लौह युग के पहले भी रसायन विद्या, खगोल विद्या, कृषि, माप-पद्धति और धातु विद्या जैसे क्षेत्रों में हिंदुस्तान ने कई उपलब्धियां अर्जित की हैं।

कोर्स के नाम पर लूटने वालो सावधान


50 लाख का होगा जुर्माना
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सरकार ने इंजीनियरिंग, प्रबंधन, मेडिकल और ऐसे ही दूसरे व्यावसायिक व गैर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई के नाम पर लूटखसोट व धोखाधड़ी करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों पर नकेल डालने की तैयारी कर ली है। दाखिले के लिए कैपिटेशन फीस की वसूली भी दंड के दायरे में होगी। इन मामलों के दोषी उच्च शिक्षण संस्थानों पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना और उन्हें संचालित करने वालों को तीन साल तक की सजा हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थानों में सभी तरह की धोखाधड़ी रोकने के लिए प्रस्तावित तकनीकी व मेडिकल शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में गलत कार्य निषेध विधेयक-2009 के मसौदे को कानून मंत्रालय की भी मंजूरी मिल गई है। बताते हैं कि विधेयक में छात्रों से कैपिटेशन फीस वसूलने, महंगा ब्रोशर (विवरणिका) बेचने, संस्थान के स्तर और वहां पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों, फैकल्टी आदि के बारे में गलत जानकारी देने और दाखिले में हेराफेरी जैसे मामलों में दंड के लिए काफी कड़े प्रावधान किए गए हैं। सूत्र बताते हैं कि विधेयक में इन मामलों के दोषी उच्च शिक्षण संस्थानों पर 50 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही जिम्मेदार पदाधिकारी को तीन साल तक की सजा भी हो सकती है। जुर्माना व सजा एक साथ भी हो सकती है। मालूम हो कि विधेयक के शुरुआती मसौदे में दस साल तक की सजा का प्रावधान किया गया था, लेकिन अब उसे तीन साल कर दिया गया है। बताते हैं कि अभी यह तय नहीं है कि जेल की सजा संस्थान के निदेशक या विश्वविद्यालयों के कुलपतियों या फिर प्रबंधतंत्र में से किस पदाधिकारी को होगी। लेकिन विधेयक को अंतिम रूप दिया जा चुका है और उसे जल्द ही केंद्रीय मंत्रिमंडल (कैबिनेट) के सामने लाने की तैयारी है। सूत्रों के अनुसार उच्च शिक्षा में सुधार के एजेंडे के तहत सरकार ने एक साथ कई पहलुओं पर काम शुरू कर दिया है। मसलन शिक्षकों, गैर शिक्षकों, प्रबंधतंत्र और छात्रों से जुड़े मामलों में सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल बनाने संबंधी विधेयक को भी अंतिम रूप दिया जा चुका है। यह ट्रिब्यूनल राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर बनेगा। राज्य ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकेगी, जबकि उसके फैसले के खिलाफ सिर्फ सुप्रीमकोर्ट का ही दरवाजा खटखटाया जा सकेगा। ट्रिब्यूनल में चेयरमैन समेत तीन सदस्य होंगे। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड या फिर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ट्रिब्यूनल के चेयरमैन होंगे।

निर्दलियों को देखकर चाल चलेगी हजकां


( डॉ सुखपाल)-
: हरियाणा विधानसभा से विश्वास मत पर गैर मौजूद रहकर हजकां अभी बहुमत के खेल को लंबा चलाना चाहती है। बेशक सरकार ने सदन में बहुमत हासिल कर लिया है, पर निर्दलीय विधायकों के सहारे स्थायीत्व नहीं आ सकता, क्योंकि हर निर्दलीय विधायक की बड़ी-बड़ी मांगे रहती हैं। सरकार को किसी न किसी तरह से हजकां या हजकां विधायकों को मैनेज करना जरूरी है। हजकां के अध्यक्ष विश्वास मत के बाद निर्दलीय विधायकों के रुख, गति व चाल को देखना चाहते हैं कि वे किस तरफ जा रहे हैं। निर्दलीय क्या-क्या शर्ते रखते हैं। कौन-कौन से मंत्री पद मांगते हैं और कांग्रेस किस हद तक इसके लिए तैयार होती है। इसके बाद ही कुलदीप अपना दांव फेंकेंगे। इधर बीच-बीच में हजकां के विधायकों की हुड्डा सरकार के पक्ष में जाने की अफवाहें भी चलती रहती हैं पर कुलदीप का कहना है कि हजकां पूरी तरह एकजुट है। चुनाव नतीजों के बाद ही कांग्रेस और हजकां में बातचीत शुरू हो गई थी। कांग्रेस चाहती है कि कुलदीप हजकां का विलय कांग्रेस में कर दें और इसके एवज में जो भी उनकी मांग होंगी, मान ली जाएंगी। कारण यह है कि अगर कांग्रेस के 40 विधायकों में हजकां के छह विधायक शामिल हो जाते हैं तो पूरे पांच साल सरकार के स्थायीत्व पर कोई बड़ा सवालिया निशान नहीं लगेगा। पर कुदलीप विलयके लिए हरगिज तैयार नहीं। कुलदीप हजकां के वजूद को कायम रखकर शरद पवार की तरह महाराष्ट्र पैट्रन पर कांग्रेस से संबंध बनाकर रखना चाहते हैं। यह भी पता चला है कि अगर हजकां सरकार को समर्थन देती है तो कुलदीप खुद अपने लिए कोई मंत्री पद नहीं लेंगे। वे अपने विधायकों में ही मलाई बांटेंगे। समझौते के किसी बिन्दू पर पहुंचने के लिए कुलदीप ने कांग्रेस के सामने एक कामन मिनीमम प्रोग्राम बनाने की भी शर्त रखी है, जिसमें हजकां के घोषणा पत्र के प्रमुख पहुलओं को शामिल किया जाएगा। कुलदीप चाहते हैं कि इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए दोनों दलों की एक सांझा कमेटी भी बने ताकि प्रदेश के विकास का कोई संशय न रहे। गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव नतीजों में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। कांग्रेस को 40, इनेलो को 32, हजकां को 6, बीजेपी को 4, निर्दलीयों को 7 और बीएसपी को 1 सीट मिली है। कांग्रेस ने सात निर्दलीय और 1 बसपा विधायक के साथ सरकार बना ली है। हजकां ने विकल्प खुले रहे हैं और कांग्रेस व इनेलो दोनों तरफ से उन्हें चारा डाला जा रहा है।

नक्सली भी वोटर कार्ड की जुगत में


( डॉ सुखपाल)-

नक्सलियों के खिलाफ सरकार की जंग सरीखी तैयारियों से छत्तीसगढ़ और झारखंड के सैकड़ों गांवों में भय और आतंक पसरा हुआ है। नक्सल प्रभावित इलाके में आने वाले गांवों में लोग सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच पिसने से बचने के उपाय खोज रहे हैं। खुद को सुरक्षा बलों के कहर से बचाने के लिए ग्रामीण वोटर कार्ड और राशन कार्ड को कवच के रूप देख रहे हैं। वहीं, खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि सुरक्षा बलों को भरमाने और दबाव बनाने के लिए जंगलों से भागकर आए नक्सली तो कहीं सरकारी पहचान पत्र हासिल करने की होड़ में नहीं जुट गए हैं। दरअसल, जब से केंद्र की नक्सलियों के खिलाफ समग्र अभियान की तैयारियां तेज हुई हैं, तभी से छत्तीसगढ़ और झारखंड में वोटर कार्ड बनवाने वालों की खासतौर पर होड़ लग गई है। लोकतंत्र के विरोधी नक्सलियों के राज में रहने वाले ज्यादातर ग्रामीण मतदान से दूर ही रहते रहे हैं। जन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते भी आदिवासियों और ग्रामीणों ने अब तक राशन कार्ड बनवाने की नहीं सोची थी। मगर अभियान की तैयारियों में आई तेजी के बाद ग्रामीण ताबड़तोड़ तरीके से सरकारी पहचान पत्र पाने के लिए सरपंचों के साथ-साथ सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने लगे हैं। ग्रामीणों में खासतौर से वोटर कार्ड बनवाने की मची इस होड़ पर राज्य व केंद्र सरकारों का ध्यान गया। इसकी पड़ताल की गई तो गांव के सरपंचों और ग्रामीणों का कहना था कि सरकार की जंग सरीखी तैयारियों से भयभीत ग्रामीण कागजी तौर पर पुख्ता हो लेना चाहते हैं। दरअसल, ग्रामीणों की सोच है कि अगर वोटर कार्ड होगा तो वे तलाशी दल के सामने अपनी पहचान के साथ-साथ लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था प्रगट कर सकेंगे। चूंकि, नक्सली लोकतंत्र या मतदान का विरोध करते रहे हैं, इसलिए ग्रामीणों को लग रहा है कि वे वोटर कार्ड दिखाकर यह साबित कर देंगे कि उनका नक्सलियों से कोई लेना-देना नहीं है। खुफिया एजेंसियां इस पहलू से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सलियों की हरकतों पर नजर रखे आईबी के सूत्रों के मुताबिक, यह माओवादियों की चाल भी हो सकती है। अभियान के मद्देनजर नक्सलियों के गांवों और शहरों में आ जाने की सूचनाएं पहले ही आ चुकी हैं। आशंका है कि नक्सली योजनाबद्ध तरीके से अपने काडरों को वोटर और राशन कार्ड दिला रहे हैं, ताकि पुलिस को उन पर हाथ डालने से पहले सोचना पड़े। इस आशंका पर गृह मंत्रालय और दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच मंत्रणा हुई। तय हुआ कि राशन कार्ड और वोटर कार्ड तो बनाए ही जाएं, इस सोच के मद्देनजर केंद्र ने दोनों ही राज्यों के प्रशासन को वोटर व राशन कार्ड बनने की प्रक्रिया तेजी से चलाने को कहा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि सरपंच या सरकारी कर्मचारी कार्ड बनाने में लोगों का शोषण न करें।

तेल डिपो में आग से जयपुर में पांच की मौत, 150 झुलसे


जयपुर( डॉ सुखपाल)
: राजस्थान की राजधानी जयपुर के सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र इंडियन आयल कारपोरेशन (आईओसी) के डिपो में गुरुवार शाम लगी भीषण आग में पांच लोगों की मौत हो गई। आगजनी की इस घटना में 150 से ज्यादा लोग बुरी तरह झुलस गए, जिनमें कइयों की हालत गंभीर बताई गई है। घायलों को सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया है। गुरुवार शाम करीब 7:30 बजे आईओसी के डिपो में अचानक आग लग गई। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप ले लिया। आग की लपटें 20-20 किलोमीटर दूर तक दिखाई दे रही थीं। जिसकी वजह से विशेषज्ञों को घटना की जांच में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आगजनी की सूचना मिलने पर शहर की सभी दमकल गाडि़यों को आग बुझाने में लगा दिया गया। लेकिन आग इतनी भयानक थी कि वह जयपुर की दमकलकर्मियों के काबू में नहीं आ रही थी। बाद में समीपर्ती क्षेत्रों से दमकल गाडि़यों को बुलाया गया। आग की गंभीरता को देखते हुए जयपुर के सभी अस्पतालों में हाई अलर्ट कर दिया गया। गैस का रिसाव होने से तेल डिपो में आग लगी है। सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अस्पताल पहुंचे और घायलों से उनका हालचाल जाना। गहलोत ने घटना के बारे में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा से भी बातचीत की।

बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

सलमान देवगन की जोड़ी


इस हफ़्ते रिलीज़ हो रही फ़िल्म 'लंदन ड्रीम्स' में ‘हम दिल दे चुके सनम’ के बाद सलमान ख़ान और अजय देवगन एक
बार फिर एक-साथ नज़र आ रहे हैं.
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विपुल शाह निर्देशित ये फ़िल्म दो बचपन के दोस्तों की कहानी है जिन्हें संगीत विरासत में मिला है. विपुल शाह हैरान हैं कि 'हम दिल दे चुके सनम' जैसी हिट फ़िल्म के बाद किसी ने अजय देवगन और सलमान को एक साथ किसी फ़िल्म में लेने के बारे सोचा क्यों नहीं.


'हम दिल दे चुके सनम' के बाद पहली बार एक साथ सलमान और अजय देवगन
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विपुल शाह कहते हैं, “ हमारे यहां तो कोई जोड़ी अगर चल जाती है तो उसे बार-बार इतनी जल्दी जल्दी दोहराना चाहते हैं कि वो घिस जाती है. यहां एक ऐसी जोड़ी है जो बहुत कामयाब रही है, लेकिन उसे 8-10 साल तक किसी ने रिपीट नहीं किया.”

विपुल शाह को इस फ़िल्म के लिए ऐसे दो कलाकार चाहिएं थे जिनमें वास्तविक जीवन में भी एक-दूसरे के प्रति सम्मान और मित्रता हो.

शाह कहते हैं, “ये फ़िल्म के लिए बहुत ज़रुरी था, क्योंकि ये कहानी दो दोस्तों की है. मैं चाहता था कि जब ये जोड़ी स्क्रीन पर दिखे तो दोस्ती का रंग निखर कर आए, दोस्ती सच्ची लगे. फ़िल्मी माहौल ना लगे”

सलमान या अजय

तो इस फ़िल्म में किसने बाज़ी मारी है? यानि कौन है किसपर भारी पड़ा है?

विपुल शाह का जवाब है, “मुझे लगता है कि दर्शकों के दिलों में ये कशमकश होगी कि उन्हें सलमान अच्छे लगते हैं या अजय. किसका काम दर्शक ज़्यादा पसंद करते हैं, उन्हें चुनने में दुविधा होगी...और अगर दुविधा होती है तो मैं बहुत ख़ुश होऊंगा”


'गजिनी' के बाद 'लंदन ड्रीम्स' में आसिन
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इस फ़िल्म में सलमान ख़ान और अजय देवगन के अलावा आसिन और वृंदा पारिख भी हैं. आसिन ने बीबीसी को बताया कि सलमान और अजय की आपस में बढ़िया दोस्ती है और उनकी दोस्ती की वजह से उन्हें फ़िल्म में काम करने में मजा़ आया.

आसिन कहती हैं, “ये दोनों बड़े फ़िल्म स्टार हैं जिनके लाखों चाहने वाले हैं लेकिन इन दोनों से मुलाक़ात करके पता चला कि वो एकदम आम आदमी की तरह हैं. ये धारणा कि उनमें सितारों वाले नखरे होंगे, बिल्कुल ग़लत है. ”

इस फ़िल्म निगेटिव रोल कर रही हैं बृंदा पारिख. हांलाकि उनका अजय देवगन के साथ कोई सीन नहीं है लेकिन वो भी इन दोनों की दोस्ती और स्वभाव से काफ़ी प्रभावित हैं. पारिख कहती हैं, “बतौर ऐक्टर अजय और सलमान दोनों ही बढ़िया हैं. सेट पर अजय बहुत ही मज़ाक करते रहते हैं और सलमान मुझे सीन के दौरान काफ़ी सहायता करते रहते हैं.”

माओवादियों के कब्ज़े से निकली ट्रेन

ट्रेन के ड्राईवर को रिहा करा लिया गया है
दिल्ली से भुवनेश्वर जा रही राजधानी एक्सप्रेस के अग़वा ड्राइवर को माओवादियों के चंगुल से रिहा करा लिया गया है और अब ट्रेन पूरी सुरक्षा में दिल्ली के लिए रवाना हो गई है.

ग़ौरतलब है कि मंगलवार की दोपहर माओवादियों ने पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम में राजधानी एक्सप्रेस के ड्राइवर को अग़वा कर ट्रेन को अपने क़ब्ज़े में लिया था. इसमें 300 से ज़्यादा यात्री इसमें फंसे हुए थे.

केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बताया, '' 'ट्रेन बिल्कुल सुरक्षित है. सारे यात्री सुरक्षित हैं. सीआरपीएफ और राज्य पुलिस मौके पर है और पूरा इलाक़ा सुरक्षा बलों के नियंत्रण में है.''

सरकार को राजधानी एक्सप्रेस से माओवादियों का क़ब्ज़ा हटाने के लिए सुरक्षाबलों से भरी एक दूसरी ट्रेन वहाँ भेजनी पड़ी.

गोलीबारी

पुलिस अधिकारी कुलदीप सिंह ने बीबीसी को बताया कि घटना की जानकारी मिलते ही बड़ी तादाद में पुलिस बल को रवाना किया गया है पर इन पुलिसबलों को माओवादियों की ओर से गोलीबारी का सामना भी करना पड़ा.

हालांकि माओवादी नेता किशन जी ने इस अपहरण की ज़िम्मेदारी लेने से इनकार किया है लेकिन माओवादियों के सहयोगी माने जाने वाले एक संगठन ने इसकी ज़िम्मेदारी ली है.

इस संगठन के असित महतो ने कहा कि जब माओवादियों की ओर से बंद का आहवान किया गया है तो फिर ट्रेनों के चलने का क्या मतलब है. अगर ट्रेनें चलेंगी तो उन्हें किसी भी तरह से रोका जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि हज़ारों की तादाद में लोगों ने ईंट-पत्थर फेंककर रेलगाड़ियों को रोका है. हालांकि राजधानी के मसले में रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि किसी ने शार्ट सर्किट करके सिग्नल बदल दिया और ड्राइवर को गाड़ी रोकनी पड़ी.

रिपोर्टों के अनुसार ट्रेन जिस वक़्त झाड़ग्राम स्टेशन के पास पहुँच रही थी और घने जंगलों वाले इलाके से गुज़र रही थी उसी वक़्त अचानक रेल सिग्नल लाल हो गया. ड्राइवर ने गाड़ी को रोका.

गाड़ी रुकते ही कुछ हथियारबंद लोगों ने ट्रेन के इंजन को घेर लिया. कपड़ों से मुंह ढके ये लोग इंजन पर चढ़ गए और इंजन से इन लोगों ने चालक आनंद राव को अगवा कर लिया.

पेशावर में बड़ा धमाका, 40 की मौत



पाकिस्तान के पूर्वोत्तर शहर पेशावर में हुए धमाके में कम से कम 40 लोग मारे गए हैं और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं.

ये धमाका पेशावर के भीड़भाड़ वाले इलाक़े पीपलमंडी में हुआ.

इस धमाके के बाद शहर में सफ़ेद धुएँ के बादल उठते देखे गए और आसपास की इमारतों में आग लग गई.

पुलिस अधिकारी अनवर शाह ने समाचार एजेंसी एएफ़सी को बताया कि कार में विस्फोटक से ये धमाका किया गया.

उनका कहना था,''ये बड़ा बम धमाका था और इसकी गूंज पूरे शहर में सुनाई दी.''

पेशावर के अस्पताल के डॉक्टर ज़फर इक़बाल का कहना था कि इस धमाके में 12 से अधिक लोग घायल हुए हैं जिनमें से कई की हालत गंभीर है.

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेना दक्षिणी वज़ीरिस्तान इलाक़े में तालेबान के ख़िलाफ़ अभियान चला रही है और इसके बाद से ऐसे धमाकों में तेज़ी आई है.

ये धमाका ऐसे वक्त हुआ है जब अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन पाकिस्तान यात्रा पर हैं.

भारत-पाक: मनमोहन ने 'दोस्ती का हाथ' बढ़ाया


मनमोहन सिंह ने भारत प्रशासित कश्मीर के युवाओं से ख़ास अपील की है
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अनंतनाग में कहा है कि वे व्यापार, लोगों की आवाजाही, अमन और विकास के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं. उन्होंने ये भी कहा कि वे चाहते हैं कि उन्होंने जो दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, पाकिस्तान उसे आगे बढ़कर स्वीकार करे.

भारत प्रशासित कश्मीर में अनंतनाग में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत लाभदायक तभी होगी यदि 'पाकिस्तान अतंकवाद पर काबू पाए और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को सज़ा दिलाए.'

उन्होंने वहाँ 18 किलोमीटर लंबी अनंतनाग-काजीगुंड रेलवे लाइन का उदघाटन भी किया.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "पाकिस्तान में अधिकतर लोग भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं. वे स्थायी अमन चाहते हैं और हम भी यही चाहते हैं. नियंत्रण रेखा (कश्मीर) के दोनों ओर व्यापार के और ज़रिए उपलब्ध कराने ज़रूरी है. भारत और पाकिस्तानी के क़ैदी अपनी सज़ा पूरी करने के बाद भी जेलों में रहते हैं."

उनका कहना था, "हमें इन मसलों में पाकिस्तान का सहयोग चाहिए. हम इन सभी मसलों पर पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं. लेकिन मुफ़ीद बातचीत के लिए ज़रूरी है कि आतंकवाद पर काबू पाया जाए. पाकिस्तान में जो लोग भारत में आतंकवाद फैलाना चाहते हैं, फिर वे चाहे ग़ैर-सरकारी ही हों, उनके तंत्र को नष्ट किया जाए और उन्हें सज़ा दिलाई जाए. मैं पाकिस्तान के आवाम और सरकार से अपील करता हूँ कि वे सच्चाई और नेक इरादों के साथ हमारा साथ दे....हमने जो दोस्ती का हाथ बढ़ाया है वे आगे बढ़कर उसे स्वीकार करें."

उन्होंने कहा, "कश्मीर के लोगों में स्थायी अमन कायम होने का विश्वास जागा है. आतंकवादी भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी का माहौल कायम रखना चाहते हैं. उन्होंने मज़हब का ग़लत इस्तेमाल किया है. उनकी सोच के लिए हमारे बीच कोई जगह नहीं है. ये हमारी भाईचारे की रिवायत के ख़िलाफ़ है." उनका कहना था कि राजनीतिक मक़सदों के लिए चरमपंथ का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में मनमोहन सिंह ने एक शेर भी सुना डाला, "कुछ ऐसे भी मंजर हैं तारीख़ की राहों में; लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई.."


'ख़ून-ख़राबे का दौर ख़त्म हो रहा है'
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जम्मू-कश्मीर के लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने पिछले कई वर्षों में केंद्र सरकार की ओर वहाँ शुरु की गई परियोजनाओं की ज़िक्र किया.

मनमोहन सिंह का कहना था, "कश्मीर में ख़ून-ख़राबे और आतंकवाद का दौर ख़त्म हो रहा है. आम आदमी समस्याओं को बातचीत से सुलझाना चाहता है. हम पहले भी कह चुके हैं कि जो भी ख़ून-ख़राबा छोड़े दे, हम उससे बात करने को तैयार हैं. गोल-मेज़ सम्मेलन भी हुआ था. मैं फिर कहना चाहता हूँ कि हम उन सभी लोगों से बात करने को तैयार है जो कश्मीर में अमन और विकास चाहते हैं. हम सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं. हमने ये कमज़ोरी के तहत नहीं कहा है. हमने पहले पाकिस्तान सरकार के साथ बातचीत भी की थी. जम्मू-कश्मीर के समग्र हल की बातचीत भी उसमें शामिल थी."

उन्होंने भारत प्रशासित कश्मीर के युवाओं से भी अपील की कि वे 'एक नए राज्य के विकास में हाथ बटाएँ.' उनका कहना था कि उन्हें युवाओं की मायूसियों का अहसास है पर हालात बदल रहे हैं और वे भी खुले दिल और दिमाग से सोचें.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना था, "चुनावों में हिस्सा लेकर आपने (कश्मीरियों) दुनिया को दिखा दिया है कि आप अमन, विकास और लोकतांत्रिक में विश्वास है...मसले होंगे लेकिन मसलों का हल बातचीत से ही हो सकता है. तरक्की में लोग हिस्सेदारी महसूस करें और पर्यटन क्षेत्र फिर ज़ोर पकड़े...रेल लाइन बनने से आना-जाना, आपसी जुड़ाव, भाईचारा बढ़ेगा और लोकतंत्र मज़बूत होगा."

राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने भाषण में कहा कि समय-समय पर केंद्र सरकार ने राज्य की मदद की है. उनका कहना था कि यदि राज्य को बंदूक से आज़ादी चाहिए तो उसे उस राजनीति से बाहर निकालना होगा जिसमें उसे धकेला गया था.

रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अपने संबोधन में कहा, "जनसमर्थन के बिना ये रेल लाइन नहीं बन सकती थी. फ़ारूक़ अब्दुल्ला के अनुरोध के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में तीन और परियोजनाओं पर विचार होगा. उर्दू में भी रेल भर्ती के लिए परीक्षा होगी. किसानों ख़ास तौर पर छोटे किसानों के भूमि अधिग्रहण के बदले में मुआवज़े के बारे जो माँगे आई हैं, उन पर विचार किया जाएगा."

शिल्पा शेट्टी --राज कुंद्रा की सगाई



फ़िल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने ब्रिटेन के व्यवसायी राज कुंद्रा के साथ सगाई कर ली है. मुंबई में हुए समारोह में सिर्फ़ नजदीकी लोग ही मौजूद थे.

हुड्डा की अग्नि परीक्षा


मुख्यमंत्री पद पर दूसरी बार आसीन होने के बाद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधानसभा में अग्नि परीक्षा देनी होगी। कल बुधवार को उन्हें सदन में बहुमत साबित करना है। वैसे आकड़ों के खेल में हुड्डा को बहुमत साबित करने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आएगी, फिर भी आखिरी वक्त में क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। बहुमत साबित करने के लिए 45 विधायकों का जादुई आंकड़ा चाहिए। इस वक्त कांग्रेस के अपने 40 विधायकों के साथ कांग्रेस को 7 निर्दलीय व बीएसपी के एक विधायक का समर्थन हासिल है। इस प्रकार कांग्रेस के पास 48 विधायकों का आंकड़ा है। फिलवक्त हजकां के 6 विधायक भी कांग्रेस को समर्थन देते दिख रहे हैं पर हजकां का कोई भी पैंतरा सरकार का स्थायीत्व तय करेगा। अगर हजकां के सूबा प्रधान कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस को समर्थन से इंकार करते हैं तो सरकार डगमगाती रहेगी क्योंकि निर्दलीय विधायकों पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। कोई भी निर्दलीय विधायक कभी भी सरकार को अलविदा कह सकता है। दूसरी तरफ, इनेलो-अकाली दल गठजोड़ की 32 सीटें है। बीजेपी भी इनके साथ आ जाए तो आंकड़ा 36 तक हो जाता है। पर अगर हजकां के छह विधायक इनेलो को समर्थन दे दें तो इनेलो के लिए दो-तीन निर्दलीय विधायकों का जुगाड़ करना कोई मुश्किल नहीं होगी। हजकां मंगलवार रात या कल तड़के विधायक दल की बैठक करने वाली है। केवल एक दिन का सत्र : नई सरकार के गठन के बाद कल से विधानसभा सत्र शुरू होगा। विधानसभा के कार्यक्रम के अनुसार केवल एक दिन का सत्र है पर बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी ) इस पर अंतिम फैसला लेगी। इनेलो इस बात का विरोध करेगी कि सत्र केवल एक दिन का क्यों रखा गया है। पहला सत्र सुबह साढे़ नौ बजे होगा जिसमें प्रोटेम स्पीकर सभी विधायकों को हल्फ दिलवाएंगे। इसके बाद स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चयन होगा। दूसरे सत्र में राज्यपाल का अभिभाषण और उस पर बहस होगी। इस बीच दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि दी जाएगी। बहुत सी नई बातें नजर आएंगी नए सदन में : इस सत्र में सदन में कई नई बातें दिखाई देंगी। मुख्यमंत्री हुड्डा दोबारा सदन के नेता होंगे। ऐसा 1972 के बाद दूसरी बार हुआ है। ओमप्रकाश चौटाला इस बार 32 सीटें हासिल करके तेवर में दिखाई देंगे। इनेलो महासचिव अजय सिंह चौटाला विधानसभा में पहली बार ही आएंगे। हजकां के अध्यक्ष कुलदीप बिश्नोई दूसरी बार विधायक के रूप में शपथ लेंगे। पर कुलदीप के पिता पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल इस बार विधानसभा में नहीं होंगे। प्रो. संपत सिंह अपने जीवनकाल में पहली बार कांग्रेस के विधायक के रूप में होंगे और चौटाला का विरोध करते नजर आएंगे। प्रो. बीरेंद्र सिंह और करण सिंह दलाल सरीखे तेज-तर्रार विधायक विधानसभा से नदारद होंगे। दलाल 1991 से लगातार इस विधानसभा के सदस्य रहे हैं। प्रोटेम स्पीकर कैप्टन अजय सिंह यादव लगातार छठी बार सदन के सदस्य होंगे।

मन जीत पाएंगे मोहन?


उम्मीदों और अरमानों की गठरी उठाए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह बुधवार को अलगाववादियों के कश्मीर बंद और आतंकी हमले की आशंकाओं के बीच एक बार फिर धरती की जन्नत में पधारेंगे। अरमान सिर्फ राज्य सरकार के ही नहीं, बल्कि आम अवाम और हड़ताल से स्वागत कर रहे अलगाववादियों के भी हैं। बीते पांच सालों में चौथी बार कश्मीर आ रहे मनमोहन सिंह के इस दौरे को जिस तरह प्रचारित किया जा रहा है, उतना प्रचार वर्ष 2004 में बतौर प्रधानमंत्री उनके कश्मीर के पहले दौरे को भी नहीं मिला था। उस समय राज्य सरकार, अलगाववादियों और आम अवाम को उनसे कोई ज्यादा उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। लेकिन इस बार सभी को उनसे वही उम्मीद है जो 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सबको चौंकाते हुए पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए पैदा की थी। सबको लग रहा है कि वह इस बार कोई बड़ा एलान करेंगे जो राज्य की तकदीर बदल देगा। खैर, अलगाववादियों के बंद के बीच बुधवार सुबह यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी व रेलमंत्री ममता बनर्जी के साथ कश्मीर पहुंच रहे प्रधानमंत्री काजीगुंड-अनंतनाग ट्रैक पर पहली रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाएंगे। साथ ही प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण पैकेज योजना का द्वितीय चरण घोषित करने व कश्मीर से सुरक्षाबलों की वापसी और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने संबंधी एलान की उम्मीद है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की चाह है कि पीएम जीरो टालरेंस के वादे की उड़ रही धज्जियों को बंद कराते हुए सुरक्षाबलों को मिले विशेष अधिकार समाप्त करें। इसके अलावा सीमा पार गए गुमराह युवकों की सम्मानजनक वापसी के लिए भी कुछ करके जाएं। वहीं, मुख्यधारा से दूर रहने वाले अलगाववादियों को हालांकि कुछ ज्यादा की उम्मीद नहीं है, लेकिन वह इस आस में हैं कि मनमोहन सिंह कश्मीर में अमन बहाली के लिए रुकी पड़ी शांति वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए औपचारिक न्योता देकर जाएंगे। हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए कश्मीर बंद का भी आयोजन किया है। पाक में सिख तीर्थ यात्रियों.. रिकार्ड की थी। पाकिस्तान की जमीन से बात कर रहे सलाहुद्दीन ने अपने कारिंदो को भारत को ईंट का जवाब पत्थर से देने की बात कही है। उसने कहा है कि अपने कैडरों का टूटा मनोबल बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा तबाही मचाएं। सलाहुद्दीन ने पलटवार कर सरकार के साथ भारतीय अवाम को भी सबक सिखाने की ताकीद की है। सलाहुद्दीन के मंसूबों का पता चलने के बाद गृह मंत्रालय ने तत्काल स्थिति की समीक्षा की। जिएची को नसीहत, दलाई पर.. डेढ़ घंटे लंबी मुलाकात में विवादित मुद्दों को कुछ इस तरह से उठाया। थाइलैंड में चीन के प्रधानमंत्री जियाबाओ के समक्ष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दलाई पर अपनी दो टूक राय के जरिए भावी वार्ता की जो बुनियाद रखी थी कृष्णा ने उसी से बातचीत को आगे बढ़ाया। फिर उठे दोनों मुल्कों के बीच हालिया विवाद की जड़ में पड़े मसले। पाक में आतंक के खिलाफ.. रास्ता भी खोल लिया। साथ ही भारत ने अफगानिस्तान में अपनी भूमिका पर दोनों मुल्कों की मुहर हासिल कर तालिबान जैसी उन ताकतों को जवाब भी दिया जो काबुल में उसकी रचनात्मक गतिविधियों पर आग बबूला हो रहे हैं। मंगलवार को हुई बैठक के दौरान काबुल में भारतीय दूतावास पर तालिबान के हमले की निंदा कर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवरोव और उनके चीनी समकक्ष यंग जिएची ने अपने मुल्कों का जवाब और साफ कर दिया। अफ-पाक में अपनी भूमिका बढ़ाने को लेकर तीनों मुल्कों का संकल्प ऐसे समय आया है जबकि अमेरिका इस क्षेत्र पर अपने रुख की समीक्षा कर रहा है। पाक की सरजमीं से सिर उठा रहे आतंकवाद से निबटने पर चीन से हामी लेकर भारत ने बीजिंग को भी खूब फंसाया है। गुलाम कश्मीर जैसे आतंकवादियों से भरे क्षेत्र में अपनी मौजूदगी पर चीन को दोबारा विचार करना पड़ेगा। आरआईसी की बैठक के बाद जिएची के साथ डेढ़ घंटे चली द्विपक्षीय मुलाकात में भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने उन्हें यह संदेश जरूर दे दिया कि पीओके आतंकियों का सुरक्षित ठिकाना है।

दो माहारानिया


विंडसर कैसल में स्वागत समारोह के दौरान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की बातों को ध्यान से सुनतीं महारानी एलिजाबेथ द्वितीय

The quality and quantity is needed for one and all in India--Dr MM Goel




There is a strong case to remove inconsistencies and contradictions between educational goals, actual policy and resources for sustainable human development for Indians in India and elsewhere in the world which calls for manpower planning ensuring accessibility, affordability and quality. To ground the educational programmes in the labour market realities, there is an urgent need of the data to develop occupational analysis with forecasting coupled with appropriate institutional mode of delivery. It is essential for manpower planning because the vocational, higher and technical education programmes have not only failed to tackle the problem of educated unemployment but aggravated it as the rates of unemployment have a tendency to rise sharply with every increase in the level of education' opined Dr MM Goel, Professor & Chairman Department of Economics, Kurukshetra University, Kurukshetra. He was addressing the students of Bhagwan Shri Krishna College of Education, on 'Excellence Models for Teachers in a Changing Economic Scenario'.
There is a strong case for reducing the gap between intellectuals and politicians in power to ensure good governance in all sectors of the economy including education which calls for teacher's constituency in parliament as well as State assemblies, believes Professor Goel who is the convener Intellectual cell of the Haryana Pradesh Congress Committee (HPCC).
Every possible effort needs to be made for the quality and quantity (both -which has a trade off) for making education as a life insurance for one and all in India. We need to declare education as the basic infrastructural activity.
To reduce the critical gap in terms of availability of opportunity of higher education between the rural and urban area in India, Professor Goel justified more allocation of public sector allocation for opening more educational institutions of higher learning in rural areas. He made a call for treating higher education as a highly valuable service that has a price tag and not a heavily subsidized commodity. There is a case for formulating a well-conceived, well planned and equally well implemntable strategy for higher education in India, believes Professor Goel. He said that the educational value of education is more important than the economic value of education which should increase the value of education rather than devaluing the value of education.
Professor Goel firmly believes that the education which makes people selfish, egoistic and intolerant is no education.
We need to promote a healthy reaction to the individualism and materialism- the dominant trend of modern education and re- conceive the process of education, not merely as an instrument of providing job but an activity that nurtures a continuous growth of the mind and the spirit, and respect the ethics and morals necessary for ordering and illumination of life, observed Professor Goel who belongs to a family of teachers for four generations.
Professor Goel feels pain in saying that spiritual bankruptcy and the Commercialization of education are the root causes of deteriorating educational standards in India and is a serious issue of concern for polluting relationship between teacher and student of today. He admitted that to some extent, the teachers are eroding the faith and confidence in Indian education system
Being a humble devotee of Lord Krishna , Professor Goel believes that spirituality- the science of soul which is ism neutral and religion free flowing from Bhagwad Gita -a sacro-secular epic needs to be accepted as mantra of excellence by the entire humanity including the teachers of today and tomorrow in all walks of life.
Professor Goel emphasized the active participation of private sector in the likelihood of growing demand in future which has to effect a change in the mind set of the masses. To keep the higher education within the reach of poor aspirants, Professor Goel made a case for effective monitoring and regulation of the private sector through appropriate policy measures - a judicious mix of policies, which ensure efficient use of the available educational resources. He has justified the use of cost-benefit analysis for developing new projects of higher education. To plug the loopholes in non-performance, he has rightly pointed out the need for accountability.
To justify the Skill of writing as an art, he quoted Alexander Pope, "True ease in writing come by Art not by chance as s (he) moves easiest who has learnt to dance". In his opinion, the writing is not an easy task and is an art which can certainly be developed through lot of reading. It needs to be noted that societies and nations can live without writing but no society can exist without reading, added Goel.
Earlier Mrs. Poonam Gupta Principal of the college welcomed & introduced Professor Goel.

शांति..शांति..शांति..!

जिस सुबह के कभी तो आने का इंतजार साहिर लुधियानवी को रहा है, उसी की आस शांति की सुबह के रूप में विश्व के चार नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं को भी है। और शांति व अहिंसा के लिए उठे ये चार महान सुर एक देश के नहीं हैं पर इन्हें दर्द और संवेदना का संबंध जोड़ रहा है। ईरान की पहली महिला जज और नोबेल लॉरिएट शिरिन ईबादी, नार्दर्न आयरलैंड की मेरिड कोरिगन मैग्वायर और अमेरिका की जोडी विलियम्स तिब्बतियों के निर्वासन पर संवेदनशील हुई होंगी तभी तो मैक्लोडगंज पहुंचीं और शांति का संदेश दिया। आखिर यह घर भी तो एक अन्य नोबेल लॉरिएट दलाईलामा का है। मैक्लोडगंज के तिब्बतियन चिल्ड्रन विलेज में मंगलवार को चारों नोबेल विजेता पीस जैम यूथ क्रांफ्रेस के बहाने जुटे तो पूरी दुनिया को शांति का संदेश गया। जोडी विलियम्स ने कहा कि नेतृत्व का अर्थ आर्थिक रूप से शक्तिशाली होना नहीं, मानवता की सेवा करना है। सभी देशों के शासक इस बात का सबसे अधिक ध्यान रखें तभी विश्वभर में शांति स्थापित हो सकती है। उन्होंने कहा कि तिब्बत का मसला गंभीर है तथा इसको लेकर चीन को सकारात्मक कदम उठाकर इस सारे मसले का हल करना चाहिए। इसके अलावा दुनिया के कई हिस्सों में चल रही हिंसा को रोकने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए ताकि विश्व में शांति स्थापित हो सके। नार्दन आयरलैंड से मेरिड कोरिगेन मैग्वायर व ईरान से शिरिन ईबादी ने कहा कि तिब्बत के लोग काफी समय से निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे हैं फिर अपनी संस्कृति को सहेजे हुए हैं जो बड़ी बात है। विश्व में बढ़ रही हिंसा गंभीर बनती जा रही है जिसे रोकने के लिए सभी को कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि तिब्बत मसले को लेकर चीन को गंभीरता से बात करनी चाहिए तथा इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए। इसके अलावा तिब्बत में मानवाधिकारों का भी पूरा ध्यान रखना जाना चाहिए। दलाईलामा ने कहा कि 21वीं शताब्दी में पूरी दुनिया में कई तरह के बदलाव हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यह बदलाव और बढ़ेगा, लेकिन एक समय ऐसा भी आएगा जब पूरी दुनिया में प्यार व शांति का प्रकाश फैलेगा। हिंसा से कभी भी शांति नहीं हुई है। अगर पिछले इतिहास को देखें तो कुछ दशकों में ही पूरी दुनिया में हिंसा से करीब दो करोड़ लोगों की जान जा चुकी है। उसके बावजूद भी कोई सही परिणाम निकलकर सामने नहीं आया है। ताकि विश्व और .. का संदेश दिया गया वहीं, इसके माध्यम से तिब्बती लोगों की पीड़ा को भी उजागर कर तिब्बत की आजादी के लिए 50 साल से जारी अभियान की अंतरराष्ट्रीय समुदाय को याद दिलाने का प्रयास किया गया। तिब्बती युवाओं को भी दलाईलामा ने इस आंदोलन में अपनाई जा रही प्यार, शांति व स्नेह की शिक्षा पर ही आगे चलने का संदेश दिया।

वसुंधरा राजे ने किया शक्ति प्रदर्शन


राज्य विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देने के बाद लगता है वसुंधरा राजे ने पार्टी को अपनी हैसियत जताने का फैसला कर लिया हैं। मंगलवार को पहली बार जयपुर आई वसुंधरा राजे समर्थक विधायक,पूर्व सांसदों व पार्टी पदाधिकारियों ने जोरदार शक्ति प्रदर्शन कर इसके संकेत दे दिए। स्वागत में जुटी भीड़ से गदगद वसुंधरा ने ऐलान किया कि वह राज्य की राजनीति नहीं छोड़ेंगी। शीघ्र ही राज्य का व्यापक दौरा करेंगी। स्वागत के बाद उन्होंने पार्टी करीब के तीन दर्जन विधायक चार पूर्व सांसदों और संगठन के पदाधिकारियों के साथ अपनी भावी राजनीति को लेकर लंबी गुफ्तगू भी की। इसमें अलग पार्टी बनाने की भी मुद्दा शामिल है। हालांकि अगले कदम की घोषणा उन्होंने शीघ्र ही करने की बात कही। इस दौरान वसुंधरा समर्थक विधायकों ने पार्टी आलाकमान पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि आलाकमान खुद तो डूबेगा ही साथ में पार्टी को भी ले डूबेगा। इस कार्यक्रम से भाजपा के वरिष्ठ और संघ से जुड़े नेता दूर रहे। वसुंधरा समर्थक इस शक्ति प्रदर्शन की तैयारियों में पिछले कई दिनों से जुटे थे। जयपुर पहुंचने पर वसुंधरा को हवाई अड्डे से उनके निवास तक जुलूस के रूप में ले जाया गया। विधायकों और पदाधिकारियों के अलावा करीब करीबह तीन हजार लोग उनके जुलूस में शामिल थे। उत्साहित वसुंधरा ने कहा कि मेरी डोली राजस्थान के धौलपुर में आई थी और अब मेरी अर्थी ही यहां से जाएगी। राजनीति में उतार चढ़ाव आते रहते है, लेकिन राजस्थान की जनता से मेरा रिश्ता प्यार की डोर से बंधा है और वह ही मेरी ताकत है।

नक्सलियों के सहयोग से बस रहा मालेनगर


सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद इंदिरा आवास नहीं मिला तो भाकपा माले के नेतृत्व में महादलितों ने खाली जमीन पर ही घर बनाना शुरू कर दिया। बस्ती का नामकरण माले नगर किया गया है। यह अलग बात है कि अभी तक जमीन का बंदोबस्त नहीं हुई है और यह गैरकानूनी है। जिस जगह गांव का निर्माण हो रहा है वह निर्जन स्थान था। यहां लोग कभी माओवादियों से बहुत खौफ खाते थे। अब मेहनत और पसीना यहां रोशनी की तलाश वाले गीतों में ढलकर रात भर गूंजती है। गांव के निर्माण में लगे लोगों की मानें तो पहले इनकी जिंदगी बस किसी तरह बीत रही थी। सरकार ने जब महादलितों के लिए विकास योजनाएं शुरू कीं तो पंचायत मुख्यालय तक इनकी भी दौड़ शुरू हो गई, पर निराशा ही हाथ लगी। जिला अधिकारी के जनता दरबार में भी इनकी नहीं सुनी गई। दौड़ लगा कर थक चुके ग्रामीणों ने तक स्वयं ही मेहनत करने की ठानी। भाकपा माले की स्थानीय कमेटी ने उन्हें भरोसा दिलाया और हिम्मत दी। मकान बनाने के लिए जमीन की खोज शुरू हुई तब कुछ दूरी पर उन्हें ऊसर जमीन मिल गयी। महादलित यहां आ पहुंचे और घरों का निर्माण शुरू कर दिया। महादलित सौ घरों के गांव का निर्माण कर रहे हैं। पहले महादलित खजूर के पत्ते से बनी झोपडि़यों में रहते थे। बरसात होने पर इनकी परेशानी बढ़ जाती थी। इनके पास एक गज भी जमीन नहीं है। बड़ी आबादी निरक्षरता का दंश झेल रही है। पीने के पानी के लिए इन्हें कोसों दूर जाना पड़ता है। हालांकि जहां गांव का निर्माण शुरू किया जा रहा है वहां पहुंचने के लिए सड़क तो है परंतु अन्य सुविधाएं नदारद। स्थानीय मुखिया पति टीपी सिंह कहते हैं कि महादलितों का इंदिरा आवास बीपीएल सूची के आधार पर बनवाया जा रहा है। जब इन महादलितों का नंबर आएगा तो इनका भी आवास बनेगा। बीडीओ सह सीओ विवेक कुमार ने बताया कि बिना बंदोबस्ती किए हुए जमीन पर घर का निर्माण अवैध है। उन्हें महादलितों द्वारा घर का निर्माण करने की जानकारी ही नहीं है।

उधार के उड़न खटोले पर उड़ते रहे हैं लालू


बड़े नेता हैं तो उधारी भी मिल जाती है। तभी तो वे कर्ज लेकर उड़नखटोले से देश भर में घूमते रहते हैं। यह कहानी लालू प्रसाद की पार्टी राजद की है। उनकी पार्टी पर एयरलाइंस कंपनियों की उधारी भी लाख-दो लाख नहीं बल्कि 2.6 करोड़ रुपये की है। अगर पार्टी को तुरंत उन कंपनियों की ही रकम चुकानी हो तो उसकी जमीन-जायदाद सब बिक जाए। सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून का इस्तेमाल करते हुए दैनिक जागरण ने राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के चंदे की पूरी पड़ताल की तो यह खुलासा हुआ। देनदारी तो सभी पार्टियों पर होती है, लेकिन उसके मुकाबले अगर कुल संपत्ति और आमदनी का अनुपात ठीक न हो तो कोई भी पार्टी संकट में पड़ सकती है। वैसे कांग्रेस इस मामले में सुविधाजनक स्थिति में है। कांग्रेस पर 2007-08 में 13.39 करोड़ रुपये की देनदारियां थीं, मगर पार्टी के खातों में 56 करोड़ रुपये का लाभ दिख रहा है। इसी तरह माकपा पर देनदारी 41 करोड़ रुपये की है, लेकिन इस पार्टी की बैलेंस शीट में 60 करोड़ रुपये का अधिशेष दिख रहा है। मायावती की पार्टी बसपा इस मामले में भी निराली है। इसने किसी देनदारी का जिक्र तो किया ही नहीं, उल्टे कुछ पर अपनी लेनदारी जरूर बताई है। पार्टी का कहना है कि इसके सीबीआई के पास पांच लाख और रमेश चंद्र सिंह खूंटिया के पास 25 लाख रुपये जमा हैं। हालांकि पार्टी ने अपने ब्योरे में यह नहीं बताया है कि यह रकम किस मकसद से जमा करनी पड़ी है। लालू की पार्टी यानी राजद पर 2.6 करोड़ रुपये की उधारी एयरलाइन कंपनियों की है। 2007-08 के जिस साल की यह उधारी है उस साल पार्टी को चंदे और सदस्यता शुल्क से मिली कुल रकम 1.89 करोड़ रुपये रही है। लालू अपनी पार्टी की उधारी चुकाने में यकीन नहीं रखते। इस दौरान पार्टी के बैंक खातों में 1.36 करोड़ जमा थे, लेकिन उधारी बढ़ते-बढ़ते दो करोड़ के पार चली गई। दिलचस्प है कि खर्च के लिए राजद ने 2007-08 में 46 लाख की एफडी भी तुड़वा ली। राजद की ओर से दिए गए आय-व्यय के ब्योरे से यह तथ्य सामने आया।

हजकां की शर्तो से कांग्रेस बेचैन

हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के बिना समर्थन से गठित हरियाणा कांग्रेस की एक्सप्रेस अब समझौते की शर्तो के बैरियर पर आकर रुक गई है। दोनों दलों की खींचतान के चलते इसके पटरी से उतरने की आशंकाएं पैदा होने लगी हैं। इस अड़चन का कारण कांग्रेस द्वारा हजकां के विलय को लेकर कड़ा रुख अख्तियार करना है। इसे देखते हुए हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई ने मंगलवार शाम दो टूक शब्दों में कह दिया है कि हजकां किसी भी कीमत पर कांग्रेस में शामिल होने को तैयार नहीं है। इस कारण कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने की बात अब दोनों पक्षों की ओर से शर्तो में आकर उलझ गई है। बुधवार सुबह कांग्रेस और हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई के बीच फिर एक और वार्ता होगी। विधानसभा में सात निर्दलीय विधायकों और बाद में एक बसपा विधायक का समर्थन मिल जाने के बाद कांग्रेस ने हजकां को कम भाव देना शुरू कर दिया है। साथ ही कांग्रेस कुलदीप बिश्नोई के साथ पूर्व में दिए आश्वासन से भी पीछे हटने लगी है। मंगलवार को कांग्रेस ने कुलदीप बिश्नोई को स्पष्ट कर दिया कि उनकी बात तभी मानी जाएगी, जब वे अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर विश्वास मत के दौरान हुड्डा सरकार के पक्ष में मतदान करेंगे। कांग्रेस के इस तेवर को देखते हुए कुलदीप ने अपने पार्टी के सभी विधायकों से विचार-विमर्श किया और सभी विधायकों ने पार्टी का कांग्रेस में विलय करने से इनकार पर मुहर लगा दी।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

बंदरों को भाया अदरक का स्वाद


घोर कलियुग! किसानों की मेहनत को उल्टा-पुल्टा करने वाले बंदरों ने अब वह कहावत भी पलट दी है, जिसमें कहा जाता था कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। हिमाचल में बंदरों ने अदरक का स्वाद भी चख लिया है। राज्य की चार लाख के करीब वानर सेना सेब की कायल तो थी ही, हरी सब्जियों में किन्नौर का मीठा मटर भी बंदरों का पसंदीदा व्यंजन बन गया है। और तो और भोजन को तीखा करने की इनकी आदत भी मानव की तरह हो गई है। खाने में हरी मिर्च भी बंदरों की पसंद बन चुकी है। वानरों की बढ़ती सेना ने जैसे-जैसे प्रदेश के खेतों में हमला बढ़ा दिया है वैसे-वैसे राज्य के किसान कंगाली की हालत में पहुंच गए हैं। अब हालत यह है कि बंदरों को तो प्रोटीन व विटामिन युक्त भोजन मिल रहा है, लेकिन पहाड़ों के किसानों के बच्चे खाली हैं। पानी सिर से ऊपर चढ़ता देख सोमवार को शिमला में प्रदेशभर से किसानों ने मोर्चा खोला और इकट्ठे होकर सरकार के समक्ष फरियाद लगाने पहुंचे हैं। सभी किसान खेती बचाओ जन संघर्ष समिति बनाकर सरकार से हल मांग रहे हैं। बंदरों के कारण सबसे ज्यादा खराब हालत सिरमौर जिले की है। इस जिले में गुठलीदार फलों के अलावा अदरक व लहसुन की सबसे अधिक फसल होती है। नौराधार क्षेत्र के हरट गांव के जीत सिंह कहते हैं- आज से चार वर्ष पहले मैं खेत में 12 हजार रुपये का अदरक का बीज बोता था तो मुझे तीन गुणा से ज्यादा और कभी 50 हजार रुपये तक कमाई हो जाती थी। लेकिन इस साल बंदर सारा अदरक चट कर गए और मुझे केवल तीन हजार रुपये की ही वसूली हो पाई। वहीं सोलन जिले में मिर्च की फसल भी बंदरों को भा गई है। खट्टे टमाटरों के साथ हरी मिर्च के चटकारे किसानों की सिरदर्दी बन गई है। वन विभाग ने हाल ही में सिरमौर जिले में बंदरों द्वारा फसलें चट करने का सर्वेक्षण करवाया तो पता चला कि ग्राम पंचायत देवना व भूप्ली मानल में क्रमवार 43 लाख व 46 लाख रुपये की फसलों को नुकसान पहुंचाया है। इसमें पाया गया कि प्रदेश की हर पंचायत में प्रत्येक ... शेष पृष्ठ 2 पर

मैक्लोडगंज की कुंडली में मालिश, ध्यान का योग


मिनी ल्हासा यानी मैक्लोडगंज। वही, जहां साठ के दशक में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा बसे थे। जहां निर्वासित तिब्बत सरकार का मुख्यालय व दलाईलामा के होने के कारण असंख्य विदेशी-देशी श्रद्धालु आते हैं। इन्हें शांति भी चाहिए और ज्ञान भी। लेकिन उनकी इसी भूख को आर्थिक उत्थान का औजार बनाते हुए मैक्लोडगंज व भागसूनाग सहित आसपास के क्षेत्रों में ध्यान, योग, रेकी व मसाज सहित कई तरह की चिकित्सा से जुड़े केंद्र शुरू हो गए हैं। केंद्र कर रहे हैं कमाई : इन केंद्रों के जरिए विदेशियों की सत्य की खोज व ज्ञान की प्यास कम हो या न हो, लेकिन संचालकों की मोटी कमाई जरूर हो रही है। ये केंद्र पूरा साल नहीं, बल्कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या के अनुसार खुलते हैं व पर्यटकों का ग्राफ कम होते ही बंद हो जाते हैं। विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए इनके संचालक केवल पोस्टरों व इंटरनेट का सहारा ले रहे हैं। पोस्टरों से अटी दीवारें : मैक्लोडगंज व भागसूनाग में ऐसे केंद्रों के संचालकों ने पोस्टरों के जरिए पूरे मैक्लोडगंज को बदरंग कर दिया है। इन केंद्रों का सबसे अधिक संचालन भारत के दक्षिण राज्यों से आने वाले लोग कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ विदेशी व तिब्बती भी इनका संचालन कर रहे हैं। लव मेडिटेशन, शिवा हीलिंग : ध्यान की अगर बात करें, तो ध्यान को इतने कोर्सो में बांट दिया गया है कि इसके बारे में शायद ध्यान का कोई बेहतरीन ज्ञाता भी न जानता हो। ध्यान की कुछ विद्याओं को शिवा हीलिंग तो कुछ विद्याओं को लव मेडिटेशन, ड्रीम मेडिटेशन सहित कई दर्जनों नाम दे दिए गए हैं। यही हाल योग का भी है। इसके अलावा इस धार्मिक नगरी में कुकिंग कोर्स व म्यूजिक क्लासों को भी पूरा जोर है। अगर इनके कोर्सो की फीस की बात करें, तो योग क्लासों की न्यूनतम फीस 18 सौ रुपये से शुरू होकर दस हजार रुपये तक है। इनमें सात दिन, पंद्रह दिन व एक माह के कोर्स है। ध्यान व रेकी (स्पर्श चिकित्सा) कोर्सो के लिए भी फीस इतनी ही है। कुकिंग कोर्स की कक्षा करीब एक माह तक चलती है व एक घंटे के यहां पांच सौ रुपये तक का दाम रहता है। फुल बॉडी मसाज का भी यहां दो घंटे का पांच सौ रुपये वसूला जाता है तथा इनमें अधिकतर विदेशी पर्यटकों को ही शामिल किया जाता हैं तथा उनसे फीस भी डालर के रूप में वसूली जाती है। इन केंद्रों का जाल मैक्लोडगंज शहर में कम है। भागसूनाग, धर्मकोट सहित आसपास के क्षेत्र में इस समय ही करीब सौ ऐसे केंद्र कार्य कर रहे हैं। संचालक इनको अधिकतर घरों या होटलों में कमरे लेकर चला रहे हैं। एक केंद्र कमा जाता है एक से दो लाख : एक माह की बात करें, तो एक केंद्र का संचालक एक से दो लाख रुपये कमाता है। इन केंद्रों के बीच कुछ बेहतरीन केंद्र भी है तथा इनमें फीस की जगह केवल डोनेशन का प्रावधान है लेकिन इनकी संख्या कम है। सरकार का नहीं ध्यान : पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग मानते हैं कि हिमाचल अब विश्व में ध्यान व योग का हब बनने लगा है। इसका यहां कारोबार करोड़ों में पहुंच चुका है। हाथ देखने की कई विद्याओं व रेकी के सहारे भी यहां योग साहित्य व ध्यान सीडी की बिक्री भी अलग से हो रही है। ताज्जुब की बात है कि यहां यह कारोबार तो बढ़ रहा है, लेकिन इस पर प्रदेश सरकार या पर्यटन विभाग का कोई प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष नियंत्रण नहीं है। इससे यहां हिमाचल के लोगों की जगह बाहर के लोग ही सबसे अधिक चांदी कूट रहे हैं तथा सरकार को भी कुछ नहीं मिल रहा है।

कलश में लौटी कमाई की राख


उन्होंने अपनी सारी पूंजी को इन्वेस्ट कर बेटों को विदेश में कमाई करने के लिए भेजा था। उम्मीद थी कि विदेश में की गई कमाई उनकी सात पुश्तों तक के दुख-दर्द दूर कर देगी। उनके बेटे लौटे तो, लेकिन सिर्फ कलश भर अस्थियों के रूप में। अपने बेटों के लौटने के बाद जिन खुशगवार पलों को जीने के सपने संजोए थे, वे चकनाचूर भी हो गए। उसी के बिखरे टुकड़े अब उनकी आंखों में चुभते हैं। फरीदकोट जिले के गांव मचाकी कलां के दो परिवारों ने अपने बेटों को विदेश में खो दिया और आखिरी समय में उनकी एक झलक भी न पा सके। विदेश में मौत का शिकार हुए बच्चों को याद कर बूढ़ी आंखें अपने बाकी बचे परिवार के पालन-पोषण का जुगाड़ करने में शून्य में ताकती रहती हैं। गुरमीत कौर के पति की मौत काफी पहले ही हो गई थी। उसने अपने दोनों बेटों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत कर परिवार का पालन-पोषण किया। इस दौरान बड़े बेटे जसप्रीत सिंह ने विदेश जाने की ठानी तो गुरमीत ने अपनी चार एकड़ जमीन गिरवी रखकर बेटे को मनीला भेज दिया। स्थायी काम हासिल करने के लिए जसप्रीत ने वहां एक अनिवासी पंजाबी लड़की खुशवीर से शादी रचा ली। बीवी के हाथों की मेंहदी अभी अपने यौवन पर थी कि वहां कुछ लुटेरों ने जसप्रीत को गोलियों से छलनी कर दिया। बेटे की मौत के बाद गांव में मानो परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह अपने बच्चे की लाश को अपनी धरती पर लाकर अंतिम संस्कार कर सकें। कुछ ही दिन बाद उसकी बहू हाथ में अस्थि कलश लिए एक विधवा के रूप में उनके सामने आ खड़ी हुई। अब यह परिवार अपनी गिरवी जमीन बचाने के लिए घर में रखी भैंसों का दूध बेचकर काम चला रहा है। इस काम में जसप्रीत का छोटा भाई जी जान से जुटा हुआ है। ऐसा ही कुछ हाल है इसी गांव के जसविंदर कौर के परिवार का। उसका बेटा भी पैसा कमाने विदेश गया था। उसे विदेश भेजने के लिए परिवार ने अपनी जमीन बेच दी। पैसे कम पड़े तो ब्याज पर पैसा उठा लिया। उसको उम्मीद थी कि बेटे को विदेश में काम मिलते ही सारा कर्ज एक ही झटके में उतर जाएगा। तकदीर को यह मंजूर नहीं था। जसपाल सिंह भी मनीला ही गया था। कुछ समय वहां काम करने के बाद किसी बीमारी से उसकी मौत हो गई। कई दिनों की मेहनत के बाद परिवार को अपने बेटे की लाश का मुंह देखना नसीब हुआ। बेटे की निशानी के तौर पर इस परिवार के पास उसका भेजा एक टेलीविजन सेट और डीवीडी प्लेयर ही हैं। जसविंदर का परिवार अब एक कच्चे मकान में दिन काट रहा है।

आस्ट्रेलिया में भारतीय पर फिर नस्ली हमलामेलबर्न

सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर नस्ली हमले थम नहीं रहे हैं। यहां रविवार को बस स्टैंड पर सो रहे सिख युवक पर दो युवकों ने ने हमला बोल दिया। दोनों हमलावरों ने युवक की पगड़ी उतार दी और उसके सिर पर प्रहार किए। पुलिस ने कहा कि 22 वर्षीय भारतीय युवक पर हुए हमले की जांच की जा रही है। हालांकि युवक के नाम व अन्य विवरण का पता नहीं चल सका है। द ऐज अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक रविवार को मेलबर्न के एपिंग रेलवे स्टेशन के पास कूपर स्ट्रीट स्थित बस स्टैंड पर युवक सोया हुआ था। दोपहर को यहां आई एक बस से पांच युवक उतरे। इनमें से दो ने भारतीय युवक पर हमला कर दिया। जबकि उनके तीन अन्य साथियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। 60 वर्षीय बस ड्राइवर और एक अन्य यात्री ने भी दोनों हमलावरों को रोकने की कोशिश की। वारदात के बाद पांचों युवक मौके से भाग गए। रिपोर्ट के मुताबिक पीडि़त युवक के मुंह पर चोट आई है, लेकिन उसे अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं है। पुलिस ने घटना के प्रत्यक्षदर्शियों से सामने आने और बयान देने की अपील की है।

फिर वही दिल लाया हूं


हरियाणा के तेज विकास और शांति के लिए वैसा ही इरादा : हुड्डा
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मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दूसरी बार सत्ता संभालते ही कहा कि प्रदेश के तेज रफ्तार विकास व शांति के लिए फिर वही दिल लाया हूं। दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने के बाद सोमवार को अपनी पहली पत्रकार वार्ता में हुड्डा ने चुनाव प्रचार और चुनावी नतीजे घोषित होने के दौरान विरोधियों व स्वयं कांग्रेस के नेताओं द्वारा उन पर लगाए गए सभी आरोपों का एक-एक कर जवाब दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह ठीक है कि सीटें कांग्रेस पार्टी को अपेक्षा से कम मिली हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी ने चुनावी युद्ध जीत लिया है। भले ही पार्टी कुछ लड़ाइयां हार गई हो। कांग्रेस पार्टी जो चुनावी लड़ाइयां हारी है, उनका कारण कुछ हद तक स्वयं की कमियां हैं। इसका कारण कुछ सीटों पर टिकटों का सही वितरण न होना है और दूसरा कारण यह है कि पार्टी के कुछ नेताओं ने संजीदगी से साथ नहीं दिया। हुड्डा ने यहां तक कह दिया कि पत्रकारों की भाषा में इसे भितरघात कहा जाएगा। रोहतक केंद्रित विकास कुछ नेताओं का झूठा प्रचार : रोहतक केंद्रित विकास के संबंध में हुड्डा ने कहा कि ऐसा बयान कुछ राजनेता अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने के लिए दे रहे हैं जबकि हकीकत में पूरे सूबे का विकास किया गया है। जिला मेवात में मेडिकल कालेज की स्थापना की जा रही है। महेंद्रगढ़ में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किया जा रहा है जबकि जिला गुड़गांव में डिफेंस यूनिवर्सिटी स्थापित की जा रही है। फरीदाबाद-गुड़गांव में मेट्रो ट्रेन शुरू की जा रही है। यमुनानगर में दादुपुर-नलवी नहर का निर्माण किया गया है। परमाणु बिजली संयंत्र लगेगा : हुड्डा ने बताया कि केंद्र सरकार के उद्यम परमाणु बिजली निगम ने जिला फतेहाबाद के कुम्हारियां में परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित करने की सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान कर दी है। 1600 करोड़ की परियोजना : उन्होंने घोषणा की कि प्रदेश में पहली नवंबर से सड़क व भवनों के निर्माण की 1600 करोड़ रुपये की एक परियोजना शुरू की जाएगी। नया पीडब्ल्यूडी कोड एक से : एक नवंबर से ही नया पीडब्ल्यूडी कोड लागू किया जाएगा क्योंकि पहला कोड काफी पुराना हो चुका है। 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस मांगा : केंद्र सरकार और केंद्रीय कृषिमंत्री से आग्रह किया गया है कि धान की खरीद पर किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जाए क्योंकि उत्पादन लागत में काफी वृद्धि हो गई है। बासमती धान खरीदें एजेंसियां : राज्य की खरीद एजेंसियों से भी कहा गया है कि वे बासमती धान के लिए मार्केट में प्रवेश करें ताकि किसानों को ज्यादा भाव मिल सके। चट्ठा कमेटी रिपोर्ट के अध्ययन के बाद अलग एसजीपीसी की बात : पहली नवंबर को हरियाणा की अलग एसजीपीसी बनाने के सवाल पर हुड्डा ने कहा कि मैंने कहा था कि इस संबंध में चट्ठा कमेटी की रिपोर्ट का कानूनी अध्ययन किया जा रहा है। इस अध्ययन के बाद की अलग एसजीपीसी की बात की जाएगी

अभियान से पहले दबाव की राजनीति

नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक जंग का वक्त नजदीक आने के साथ ही राजनीतिज्ञों व बुद्धिजीवियों ने केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ लामबंदी तेज कर दी है। बुद्धिजीवी तो कोलकाता से लेकर दिल्ली तक केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं, मगर अभियान के लिए असली खतरा फिर पश्चिम बंगाल ही बन रहा है। नक्सलियों के खिलाफ सामूहिक अभियान में पहले राज्य की वामपंथी सरकार बाधक थी तो इस बार कांग्रेस की सहयोगी ममता बनर्जी की राजनीति ही केंद्र के आड़े आ रही है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की चिदंबरम के साथ बढ़ती नजदीकी या नक्सलियों के खिलाफ सामूहिक अभियान के लिए केंद्र व राज्य सरकार के बीच बन रही केमिस्ट्री ममता को बेचैन किए हुए है। वह तो शुरू से ही नक्सलियों के खिलाफ आक्रामक अभियान के विरोध में थीं, लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी. चिदंबरम के अडिग रवैये के चलते वह शोर मचाने से ज्यादा कुछ नहीं कर सकीं। मगर बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार के पुलिस अधिकारी और माओवादियों की अदला-बदली प्रकरण और इस दौरान चली राजनीति से ममता को ताकत मिल गई। इस बीच नक्सलियों द्वारा अपहृत दो पुलिस वालों के मुद्दे पर बुद्धदेव के विरोधाभासी बयानों के बाद तो ममता को फिर केंद्र पर दबाव बनाने का मौका मिल गया है। अब वह मंगलवार को पुलिस के दोनों अपहृत सिपाहियों- साबिर अली मुल्ला और कंचन गोड़ई के परिवार वालों के साथ गृहमंत्री चिदंबरम से मुलाकात करेंगी। उनकी मांग तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की होगी, लेकिन वास्तविक एजेंडा पश्चिम बंगाल से अ‌र्द्धसैनिक बल कम करने और माओवादियों के खिलाफ अभियान रोकने का होगा। यह भी अजीब स्थिति है कि पहले सामूहिक अभियान में बाधक बनी रही पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार जब पूरी तरह केंद्र के साथ है तो अब संप्रग की सहयोगी तृणमूल बाधा खड़ी कर रही है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी की बात सुनने में तो पूरी तवज्जो दी जाएगी, लेकिन नक्सलियों के खिलाफ अभियान में जरा भी ढील नहीं बरती जाएगी। यद्यपि, वे भी मान रहे हैं कि ममता के साथ-साथ बुद्धिजीवियों ने जिस तरह से सरकार के खिलाफ बौद्धिक जेहाद छेड़ा है, उससे सरकार पर दबाव बनने का खतरा तो बढ़ा ही है। दरअसल, नक्सलियों की नृशंस व क्रूर करतूतों के बावजूद उनके हमदर्द बुद्धिजीवियों को केंद्र सरकार अपने पक्ष में नहीं ला सकी है। पीयूसीएल ने तो दिल्ली में सभा कर केंद्र सरकार को फासिस्ट करार दिया और इस अभियान के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। पीयूसीएल की सभा में बुद्धिजीवियों ने न सिर्फ केंद्र बल्कि सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर चल रहे हैं जिनकी नजर भारत की खनिज संपदा पर है। इसीलिए, केंद्र लोगों की समस्या दूर करने के बजाय उनको मारने की योजना बना रही है।

भारत-अमेरिका संयुक्त युद्धाभ्यास


झांसी के पास बबीना में भारतीय सेना अमेरिका के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास कर रही है। 12 अक्टूबर को शुरू हुए 18 दिनों के युद्धाभ्यास में भारतीय टी-90 टैंकों ने सोमवार को अपनी मारक क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया। इस अभियान में भारतीय सेना का ध्रुव हेलीकाप्टर भी भाग ले रहा है।

राजनीतिक दलों की झोली में 800 करोड़


हमेशा खुद को फक्कड़ बताकर चंदा जुगाड़ने की फिराक में रहने वाली राजनीतिक पार्टियों की बातों में न आएं। न ही सादगी और बचत के इनके दिखावों पर जाएं। इन पार्टियों की अंटी में खूब माल है और शाहखर्ची में भी ये किसी कंपनी से पीछे नहीं। देश की सात राष्ट्रीय पार्टियों की कुल संपत्ति आठ सौ करोड़ से भी ज्यादा है। इसमें भी सिर्फ जमीन-जायदाद यानी अचल संपत्ति की बात की जाए तो 35 करोड़ के साथ साम्यवादी विचारधारा वाली माकपा ही सबसे आगे है। राष्ट्रीय पार्टियों की संपत्ति का जायजा लें तो इन दिनों सादगी अभियान चला रही कांग्रेस पार्टी के पास 340 करोड़ रुपये का माल-मत्ता है। सीटों और वोटों के मामले में नंबर दो भाजपा 177 करोड़ रुपये की मालिक है। इसी तरह मायावती की बसपा के पास 118 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वर्ग संघर्ष की बात करने वाली माकपा भी पीछे नहीं है। बैलेंस शीट के मुताबिक इसकी परिसंपत्ति 157 करोड़ रुपये है। ये आंकड़े पार्टियों के सालाना आयकर रिटर्न पर आधारित हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर ये पार्टियां कागजों पर इतनी घोषणा करती है तो वाकई इनके पास कितना माल होगा। दैनिक जागरण ने आरटीआई के जरिये जो जानकारी जुटाई है उसके मुताबिक चुनाव आयोग में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, माकपा, भाकपा, राजद और राकांपा ने साल 2008-09 के लिए अपने रिटर्न में अपनी जो परिसंपत्ति बताई है, वो कुल मिला कर 811 करोड़ है। अब यदि बात की जाए अचल संपत्ति यानी जमीन-जायदाद की तो हमेशा पूंजी के खिलाफ खड़ी दिखाई देने वाली माकपा गर्व के साथ नंबर एक पर खड़ी है। इसके बाद 31 करोड़ की अचल जायदाद के साथ भाजपा है और फिर 25 करोड़ रुपये के साथ कांग्रेस। पार्टी फंड का ब्योरा बताता है कि इसमें कार्यकर्ताओं का योगदान मामूली होता है। 2007-08 के दौरान इनकी कुल कमाई में कार्यकर्ताओं का योगदान सिर्फ पांच फीसदी रहा। इनमें सबसे समर्पित बसपा कार्यकर्ता दिखे। बाकी सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने मिला कर जितना सदस्यता शुल्क दिया, उससे छह गुना अकेले बसपायों ने दे दिया। बसपा को सदस्यता शुल्क से 20 करोड़ 50 लाख रुपये मिले, जबकि कांग्रेस को सवा दो करोड़ और भाजपा को सिर्फ डेढ़ करोड़।

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